बिजली दर में वृद्धि पर उपभोक्ता परिषद की याचिका
लखनऊ | बिजली दर में पावर कार्पोरेशन के दबाव में व्यापक वृद्धि की गई है.
नियामक आयोग द्वारा प्रदेश के बिजली दर में व्यापक वृद्धि की गई है.
ग्रामीण विद्युत उपभोक्ताओं की बिजली दरों में 67 से 150 प्रतिशत की वृद्धि की गई है.
किसानों की बिजली दरों में लगभग 50 प्रतिशत की वृद्धि की गई है.
जिसको लेकर पूरे प्रदेश में ज्यादातर जिलों में किसान आन्दोलित हैं और प्रदर्शन कर रहे हैं.
30 नवम्बर को जारी टैरिफ आदेश के दूसरे दिन उपभोक्ता परिषद की याचिका पर आयोग द्वारा परीक्षण किया गया.
कर आयोग के सामने प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया था.
नियामक आयोग अध्यक्ष एसके अग्रवाल देश से बाहर एक सप्ताह की छुट्टी पर चले गये हैं.
ज्यादातर जिलों में किसान आन्दोलित
उपभोक्ता परिषद ने मुख्यमंत्री योगी से यह माँग की है कि उपभोक्ता परिषद की याचिका पर परीक्षण कर निर्णय ले.
पावर कार्पोरेशन द्वारा टैरिफ आदेश आम जनता पर लागू करने हेतु जारी सार्वजनिक सूचना पर रोक लगायी जाये.
अन्यथा पूरे प्रदेश की जनता में एक गलत संदेश जायेगा कि पहले पावर कार्पोरेशन ने दबाव डालकर दरें बढ़वायी.
फिर नियामक आयोग अध्यक्ष को देश से बाहर भेज दिया.
केवल 2.4 घंटे अधिक बिजली दे देने से ग्रामीण क्षेत्र की जनता क्या शहरी हो जायेगी .
दोनों का रहन, सहन, सुविधा, अस्पताल, स्कूल सब अलग-अलग है.
फिर यह प्रदेश का दुर्भाग्य है कि पावर कार्पोरेशन ने थोड़ी सी अधिक बिजली देकर गाँव पर शहर का टैरिफ लागू करा दिया.
विद्युत अधिनियम 2003 के प्राविधानों के तहत वितरण संहिता में गाँव व शहर के स्टैण्डर्ड ऑफ परफारमेंस अलग अलग है.
उदाहरण के तौर पर गाँव में ट्राँसफार्मर बदलने का मानक 72 घंटे है और शहर में 24 घंटे.
गाँव में आजभी दसियों किमी चलकर उपभोक्ता अपना बिल जमा करने जाते हैं.
शहर में गली.गली में बिल जमा होता है.
इसी प्रकार सभी मानक भिन्न हैं फिर शहर की तुलना गाँव से करना पावर कार्पोरेशन की तुगलकी नीति है.
सबसे बड़ा चैंकाने वाला मामला यह है कि ग्रामीण मीटर्ड उपभोक्ता पहले जो रू 50 किवा फिक्स चार्ज और रू 2.20 प्रति यूनिट के आधार पर बिल चुकाते थे.
अब उन्हें रू 80 प्रति किवा और 5 स्लैब शहरी उपभोक्ताओं की भाँति रू 3 प्रति यूनिट से अधिकतम रू 5.50 प्रति यूनिट तक चुकायेंगे.
जो यह दर्शाता है कि मीटर लगाओ तब भी आपको टैरिफ शॉक झेलना है न लगाओ तब भी यह कैसी नीति है.