लखनऊ नगर निगम चुनाव में वार्ड 34 तिलकनगर से पार्षद बनीं सादिया रफीक
लखनऊ. नगर निगम चुनाव में सबके कम उम्र की पार्षद बनीं निर्दलयी प्रत्याशी सादिया रफीक ने भाजपा प्रत्याशी को हराया.
दरअसल, लखनऊ निकाय चुनाव में वार्ड 34 तिलकनगर से लखनऊ की सबके कम उम्र की पार्षद बनीं सादिया रफीक .
16 मेयर की सीटों में से 14 सीटें जीतकर एक बार फिर से बीजेपी ने साबित कर दिया कि अभी भी भाजपा का करिश्मा कायम है.
23 वर्षीय निर्दलयी प्रत्याशी सादिया रफीक ने भाजपा प्रत्याशी को हराकर जीत दर्ज की.
लखनऊ नगर निगम चुनाव में युवाओं का चेहरा बनीं सादिया रफीक की ये जीत कई मायनों में खास है.
क्योंकि सादिया ने अपने परिवार की वजह से राजनीति को नहीं चुना.
बल्कि बचपन से ही उनके दिल में तमन्ना थी समाजसेवा करने की.
यही वजह है कि सादिया को जब राजनीति में हाथ आजमाने का मौका मिला, तो उन्होंने मौके पर चौका मार दिया.
खास बातचीत में सादिया ने बताया कि वो पॉलिटिकल फैमिली से आती हैं.
उनके पिता, चाचा और भाई काफी पहले से चुनाव लड़ते आए हैं.
उन्होंने जनता के प्रतिनिधि के तौर पर लोगों की सेवा भी की है.
उनका कहना है कि वो बचपन से ही अपने घर में राजनीति के गुर सीखती रही हैं.
राजनीतिक परिवार से होने के नाते उनके अंदर किसी नौकरी की लालसा नहीं जगी.
निर्दलयी प्रत्याशी रफीक ने भाजपा प्रत्याशी को हराकर जीत दर्ज की
यही वजह है कि उन्होंने अपनी पढ़ाई भी वैसी ही चुनी, जिसके जरिये वो समाज की सेवा कर सकती हैं.
सादिया का कहना है कि ‘मेरे परिवार के लोगों ने प्रधानी से लेकर पार्षदी तक का चुनाव लड़ा है.
इस तरह से कहा जाए तो मैं एक पॉलिटिकल परिवार से आती हूं.
बचपन से ये सब चीजें देखते-देखते मेरे भीतर ही राजनीति की इच्छा जगी.
यही वजह है कि जब मैंने अपने परिवार को राजनीति और समाजसेवा के बारे में बताया, तो उन्होंने कभी मुझे मना नहीं किया.
मेरे पापा, मेरे भईया इससे पहले इस वार्ड के पार्षद रह चुके हैं और अब मैं.
फोटोग्राफी का शौक रखने वाली सादिया अभी एमिटी यूनिवर्सिटी से मास कम्यूनिकेशन से ग्रेजुएशन कर रही हैं.
पत्रकारिता की पढ़ाई करने के पीछे की वजह वो बताती हैं कि उनके भीतर समाज सेवा की भावना ने ही उन्हें पत्रकारिता की तरफ मोड़ा.
वो मानती हैं कि लोगों की आवाज बनने के लिए उनके लिए पत्रकार बनना जरूरी है या फिर जनप्रतिनिधि बनना.
सादिया कहती हैं कि वो जब अपने इलाके में लोगों को बुनियादी जरूरतों के लिए जद्दोजहद करती हुई देखती हैं, तो उनका मन कचोटने लगता है.
सादिया अपनी जीत के बारे में कहती हैं कि भाजपा प्रत्याशी से ये चुनाव जीतना उनके लिए इतना आसान नहीं था.
मगर उनकी जीत में सबसे बड़ी भूमिका निभाने का काम उनकी पत्रकारिता की पढ़ाई ने किया.