बढ़ सकती है महंगाई

आरबीआई पर जरूरत से ज्यादा सख्त मौद्रिक नीति तय करने का आरोप: अर्थशास्त्री आशिमा गोयल

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महंगाई

खुदरा महंगाई की दर हो गई है नवंबर में बढ़कर 4.88 फीसदी

नई दिल्ली:LNN: महंगाई बढ़ने का मुख्य कारण ईंधन सहित गैर-खाद्य वस्तुओं का महंगा होना रहा.

नवंबर में खुदरा उपभोक्ता सूचकांक (सीपीआई) की वृृद्धि दर पिछले 15 महीनों के सर्वोच्च स्तर – 4.88 – फीसदी पर पहुंच गई.

केंद्रीय सांख्यिकी संगठन द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार एक महीने पहले खुदरा महंगाई की यह दर 3.58 फीसदी ही थी.

वहीं नवंबर 2016 में खुदरा महंगाई की दर 3.63 फीसदी थी.

इस तरह इसने भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की दूसरी छमाही की अनुमानित रेंज – 4.3-4.7 फीसदी – को भी पीछे छोड़ दिया है.

पिछले महीने महंगाई बढ़ने का कारण ईंधन सहित गैर-खाद्य वस्तुओं का महंगा होना रहा.

ईंधन की महंगाई दर जहां 7.92 फीसदी रही, वहीं आवासीय सेक्टर की 7.36 फीसदी.

वैसे खाने-पीने की वस्तुओं में फल, सब्जी और अंडे बाकी खाद्य वस्तुओं से ज्यादा महंगे हुए.

नवंबर में हुई भारी बारिश से फल और सब्जियों की फसल को काफी नुकसान पहुंचा था.

बारिश से प्याज, टमाटर जैसी पहले से महंगी सब्जियां और महंगी हो गईं.

वहीं ठंड बढ़ने से अंडे के दाम बढ़ गए हैं.

आरबीआई और सरकार  की बढ़ीं चिंताएं

दालों के सस्ते होने का सिलसिला नवंबर में भी जारी रहा.

कुल मिलाकर नवंबर में खाद्य वस्तुओं की महंगाई दर (सीएफपीआई) 4.42 फीसदी दर्ज की गई.

कच्चा तेल भी लगातार महंगा हो रहा है.

मंगलवार को ब्रेंट क्रूड आॅयल की कीमत ढाई साल में सबसे ज्यादा हो गई.

पिछले छह महीनों में करीब 48 फीसदी की तेजी के साथ अब यह 65.70 डॉलर तक पहुंच गया है.

सीपीआई में 28 फीसदी की भागीदारी रखने वाली ‘सेवाएं’ भी जीएसटी लागू होने के बाद से लगातार महंगी हो रही हैं.

जानकारों के अनुसार नवंबर के सीपीआई के आंकड़े से केंद्र सरकार और आरबीआई दोनों की चिंताएं और बढ़ गई हैं.

अभी के हालात देखकर कई जानकार मान रहे हैं .

अगले साल मार्च में खुदरा महंगाई दर को चार फीसदी के नीचे सीमित रखने का लक्ष्य अब अधूरा ही रह जाने वाला है.

बल्कि कई वजहों से अगले कुछ महीनों तक देश में खुदरा महंगाई के अभी और चढ़ने की आशंका है.

इससे आरबीआई द्वारा ब्याज दरों में कटौती की संभावनाएं भी लगभग खत्म हो गई लगती हैं.

महंगाई इन वजहों से भविष्य में और बढ़ सकती है

1. 2017 में कच्चे तेल के दाम में उम्मीद से ज्यादा तेजी देखी गई.

पहली छमाही में ब्रेंट क्रूड आॅयल 50 डॉलर प्रति बैरल के नीचे था.

लेकिन अब इसका दाम लगभग डेढ़ गुना हो गया है.

आगे भी इसके 65 डॉलर प्रति बैरल के आसपास रहने की संभावना है.

2018-19 के बजट में केंद्र सरकार कच्चे तेल का मानक भाव 65 डॉलर प्रति बैरल मानकर गणनाएं करने वाली है.

पिछले साल यह मानक 55 डॉलर था. वहीं जापानी वित्तीय फर्म नोमुरा मानती है.

कच्चे तेल के दाम में 10 डॉलर की तेजी आने से महंगाई 0.6 से 0.7 फीसदी के बीच बढ़ जाती है.

2018 में कच्चे तेल के दाम में बढ़ोत्तरी की आशंकाओं की वजह से खुदरा महंगाई को लेकरचिंता बनी है.

2. केंद्र ने एक जुलाई, 2018 से सातवें वेतन आयोग के तहत लंबित आवासीय और अन्य भत्तों को देने की घोषणा कर दी है.

इससे खुदरा महंगाई में करीब 0.3 फीसदी की वृद्धि होने का अनुमान है.

3. इस साल मानसून के ज्यादा अच्छा न रहने से खरीफ और रबी दोनों फसलों का उत्पादन पिछले साल से कम रहने का अनुमान है.

इससे अनाज और उद्योगों के कच्चे माल के महंगा होने का अनुमान है.

4. केंद्र का राजकोषीय घाटा मौजूदा वित्त वर्ष में 3.2 फीसदी के तय लक्ष्य के पार जाने की आशंका है.

राज्यों का राजकोषीय घाटा 2.6 के बजाय तीन फीसदी रहने का अनुमान है.

ऐसे में इस वित्त वर्ष में देश का कुल राजकोषीय घाटा अनुमान से 0.5 से 0.7 फीसदी रहने का अंदाजा है.

किसानों की कर्ज माफी, जीएसटी के चलते राजस्व में कमी जैसे कारक जिम्मेदार हैं.

अब केंद्र सरकार की योजना अगले वित्त वर्ष में निगम कर को 30 से घटाकर 25 फीसदी करने की है.

ऐसी दशा में अगले वित्त वर्ष में देश के राजकोषीय घाटे को घटाकर 5.5 फीसदी करना बहुत मुश्किल होगा.

चूंकि बढ़ा हुआ रोजकोषीय घाटा बाजार में पूंजी का प्रवाह बढ़ाता है,

इसलिए इससे खुदरा महंगाई भी बढ़ जाती है.

ऐसे में महंगाई की दर को चार फीसदी के आसपास रखना सरकार और आरबीआई के लिए कठिन चुनौती होने वाली है.

आरबीआई का अनुमान सही साबित हो रहा है

5. इस हफ्ते अमेरिका का केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व ब्याज दरों में एक बार फिर चौथाई फीसदी की वृद्धि कर सकता है.

इसमें अगले साल भी बढ़ोतरी की संभावना है. इससे रुपये की तुलना में डॉलर के मजबूत होने की उम्मीद है.

इससे आयात के महंगा होने से महंगाई के और बढ़ने की आशंका है.

कुछ दिन पहले प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद की सदस्य और अर्थशास्त्री आशिमा गोयल ने आरबीआई पर जरूरत से ज्यादा सख्त मौद्रिक नीति तय करने का आरोप लगाया था.

उन्होंने कहा था कि बीते कई वर्षों में वास्तविक महंगाई आरबीआई के अनुमान से कम रही है.

उन्होंने रेपो और महंगाई दर के अंतर को घटाकर केवल एक प्रतिशत रखने की भी वकालत की थी.

सीपीआई के नवंबर के आंकड़े देखने के बाद महंगाई पर आरबीआई का रुख वाजिब मालूम पड़ रहा है.

महंगाई के अनुमान से भी ज्यादा बढ़ने से यह साबित है कि आरबीआई का आकलन सही था.

विश्लेषकों के मुताबिक 4.88 फीसदी की खुदरा महंगार्इ् दर को देखते हुए छह फीसदी की रेपो दर को कहीं से भी सख्त मौद्रिक नीति नहीं कहा जा सकता.

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