सौंदर्य प्रसाधन में मौजूद घातक रसायन इंसानों के शरीर में पहुंच रहे हैं
beauty product का प्रयोग आज के समय में हर खासों आम कर रहा है.
हमारे देश में उपभोक्ता को पता ही नहीं कि वह जिन beauty product का प्रयोग कर रहा है उसमें क्या क्या पड़ा है.
उसको बनाने वाली कंपनी नियमों का पालन कर रही है या नहीं.
बनाने वाली नामी कंपनियों के उत्पादों में हर्बल सामग्रियों, जैसे कि जौ, अंजीर और अखरोट के नाम पर प्लास्टिक के सूक्ष्म कण की मिलावट का मुद्दा उठाता रहा है,
जो न सिर्फ इंसानी सेहत के लिए, बल्कि पर्यावरण के लिए भी नुकसानदेह है.
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इनका इस्तेमाल टूथपेस्ट, फेसवॉश, स्क्रब, बॉडीवॉश और हैंडवॉश आदि में धड़ल्ले से किया जा रहा है.
सुंदरता बढ़ाने वाले ऐसे उत्पादों का हमारे चेहरे और शरीर पर जो कुछ असर पडऩा है, वह तो आगे चल कर पता चलेगा.
जिन beauty product के बल पर लोग, खासतौर से महिलाएं सुंदरता हासिल करना चाहती हैं,
उनमें से बहुत से उत्पाद कैंसर तक फैला सकते हैं.
मामला गंभीर है क्योंकि त्वचा की देखभाल और रंगत सुधारने से लेकर बालों आदि की देखभाल के दावे अब सौंदर्य प्रसाधन कंपनियां करने लगी हैं.
स्पष्ट है कि वे ऐसा उनमें डाले जाने वाले तत्त्वों और रसायनों के आधार पर कर रही हैं,
लेकिन ये रसायन क्या हैं, उनकी मात्रा कितनी है, और कहीं वे इंसान और पर्यावरण के लिए खतरनाक तो नहीं है ,
इस बारे में आमतौर पर कहीं से कोई निर्देश नहीं मिल रहा है.
सुंदरता की देखभाल के लिए प्रयुक्त होने वाले उत्पादों में मौजूद घातक रसायन इंसानों के शरीर में पहुंच रहे हैं, यह बात अध्ययनों से साबित हुई है.
सुंदर दिखने की चाह बिना जांचे-परखे Beauty product का हो रहा प्रयोग
पर समस्या यह है कि सुंदर दिखने की चाह लोगों को बिना जांचे-परखे लोशन, फेसवॉश, क्रीम, शैंपू की तरफ खींचे जा रहें है.
स्वस्थ-सुंदर दिखने की चाह महिलाओं के साथ-साथ पुरुषों को भी सौंदर्य प्रसाधन के प्रयोग के लिये प्रेरित कर रहीं है
गांव-कस्बों की महिलाएं भी इसमें पीछे नहीं है.
वहां भी टीवी के प्रभाव व शहरी महिलाओं की देखादेखी ब्यूटी पार्लर जाने का चलन जोर पकड़ रहा है.
एक सर्वे में दावा किया गया कि देश में जिन सौंदर्य प्रसाधनों का इस्तेमाल हो रहा है उनमें जहरीले तत्त्वों की मात्रा है.
ऐसे प्रसाधन महिलाओं में त्वचा कैंसर, पेट की रसौली जैसे गंभीर रोग पैदा कर रहे हैं.
ड्रग्स एंड कॉस्मैटिक एक्ट के मुताबिक यदि सौंदर्य प्रसाधन में निर्धारित मात्रा से ज्यादा रसायन पाए जाते हैं,
तो इसे कानून का उल्लंघन माना जाएगा और दोषी व्यक्ति, संस्था अथवा कंपनी को सजा और जुर्माना भुगतना पड़ेगा.
लेकिन इन कानूनों की प्राय: अनदेखी ही होती है
कानून होने के बाद भी सौंदर्य प्रसाधनों में बड़ी मात्रा में खतरनाक तत्त्वों का मिलना साबित करता है,
कि न तो उनकी नियमित जांच हो रही है और न उनकी बिक्री रोकी जा रही है.
इसकी एक बड़ी वजह यह है कि देश में ऐसे कानूनों के सुनिश्चित पालन की व्यवस्था नहीं है,
वे कंपनियों और सरकार को नियमों के पालन के लिए बाध्य कर सकें.
खुद उपभोक्ता भी कोई पहल नहीं करते, भले ही उन्हें इस कारण घातक नतीजे क्यों न झेलने पड़ रहे हों.
ध्यान देने की एक और बात यह है कि हमारे देश में आयातित सौंदर्य प्रसाधनों को लेकर काफी ज्यादा मोह है.
यहां विदेशी ब्रांडों की ऐसी मांग है कि उन पर आंख मूंद कर भरोसा किया जाता है.
अभी किसी संस्था ने यह पता लगाने की कोशिश नहीं की है
कि भारतीय महिलाओं में कैंसर के जो मामले बढ़ रहे हैं,
कहीं उनके पीछे सौंदर्य प्रसाधनों की भी तो कोई भूमिका नहीं है.
यही नहीं, भारत में तो स्थापित ब्रांडों की नकल भी धड़ल्ले से की और बेची जाती रही है.
किसी नामी ब्रांड की नकल के रूप में बिक रहे उत्पाद में कितने अधिक खतरनाक तत्त्व मौजूद हो सकते हैं,
इसका अंदाजा शायद ही हो पाए.
सरकार या कोई संस्था देश की महिलाओं को बता पाए कि सुंदरता का मतलब चेहरे पर क्रीम-पाउडर पोत लेना नहीं है.
बल्कि खुद को स्वावलंबी बनाते हुए समाज में अपनी उपयोगिता को साबित करना है.