कोवैक्सीन या कोविशील्ड (Covishield or Covaxin) भारतीय वैक्सीन के साइड इफेक्ट की पड़ताल करने के लिए बनी टॉप सरकारी कमिटी ने साबित कर दिया है कि कोवैक्सीन और कोविशील्ड लेने के बाद ब्लड में थक्का (clotting) नहीं जमता. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को नेशनल एईएफआई (AEFI) कमेटी ने रिपोर्ट सौंपी है.
Covishield & Covaxin कमेटी ने कहा है कि कोरोना की वैक्सीन लगने के बाद क्लॉटिंग और ब्लीडिंग के मामले बहुत कम हैं.कोवैक्सीन को लेकर AEFI कमेटी को एक भी ब्लड क्लॉटिंग की शिकायत नहीं मिली.
Covishield or Covaxin कमिटी ने सरकार द्वारा चलाए जा रहे वैक्सीनेशन ड्राइव के तहत 400 प्रतिकूल असर वाले लोगों के स्वास्थ्य का गहन विश्लेषण किया
इसके बाद पाया कि इन वैक्सीन से खून में किसी तरह का थक्का नहीं बनता. सरकार के वरिष्ठ अधिकारी के पास कमिटी ने अपनी रिपोर्ट सौप दी है.
रिपोर्ट के मुताबिक, कोविड-19 मुहिम की शुरुआत होने से 23,000 लोगों ने वैक्सीन लगवाने के बाद साइड इफेक्ट की बात कही.
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753 जिलों में से 684 जिलों के लोगों में यह दिक्कत सामने आई. इसमें 3 अप्रैल तक के आंकड़े शामिल हैं.इनमें से 700 मामलों में ही गंभीर साइड इफेक्ट देखने को मिले.
ऑक्सफोर्ड/एस्ट्राजेनेका की कोविड-19 वैक्सीन भारत में सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया बनाती है. इसका मुख्यालय पुणे में है.
इस वैक्सीन को कोविशील्ड के नाम से जाना जाता है. वैसे, कोविशील्ड से साइड इफेक्ट के मुकाबले इसके फायदे कहीं अधिक हैं.
सरकार के अनुसार, यह कोरोना के संक्रमण से सुरक्षा प्रदान करती है. 27 अप्रैल तक देश में 13.4 करोड़ से ज्यादा लेागों को कोविशील्ड दी गई.
इस मामले को देख रहे इंक्लिन ट्रस्ट के कार्यकारी निदेशक और नेशनल एडवर्स इवेंट फोलोइंग इम्यूनाइजेशन (एनईएफई) के सलाहकार डॉ एन के अरोड़ा ने बताया कि इस तरह के केस का विश्लेषण कर लिया गया है.
Covishield or Covaxin उन्होंने बताया कि कोविशिल्ड या कोवैक्सीन की डोज लेन के बाद किसी तरह की अस्वभाविक ब्लीडिंग या खून में थक्का नहीं जमता.
डॉ अरोड़ा ने बताया कि वैक्सीन लेने वालों में से 412 ऐसे केसों का विश्लेषण किया गया जिसमें वैक्सीन की डोज लेने के बाद व्यक्ति पर कुछ न कुछ प्रतिकूल असर पड़ा था.
इन मामलों में व्यक्ति को अस्पताल ले जाना पड़ा था जबकि कुछ मामलों में व्यक्ति की मौत भी हो गई थी.
अंत में कमिटी के विशेषज्ञों ने पाया कि इनमें से कोई भी ऐसा मामला नहीं था जिसमें वैक्सीन की डोज लेने के कारण व्यक्ति की खून में बहाव आया हो या खून में थक्का जम गया हो.
इस निष्कर्ष को कोविड 19 के लिए बने नेशनल एक्सपर्ट ग्रुप ऑन वैक्सीन एडमिनिस्ट्रेशन (एनईजीवीएसी) और जीएसीवीएस के सामने पेश किया गया.
डॉ अरोड़ा ने बताया कि जितने भी एडवर्स इफेक्ट का मामला आ रहा है, उन सब पर बारीकी से निरीक्षण किया जा रहा है. ऐसे समय में जब वैक्सीनेशन की गति को तेज किया जा रहा है,
राज्य और केंद्र सरकार बेहतर तालमेल के साथ गंभीर एईएफआई वाले लोगों की पहचान करती है और उनका सभी परीक्षण बहुत तेजी से करती है.
इन सब मामलों पर एनईजीवीएसी की नजर रहती है. उन्होंने कहा कि हम यह सुनिश्चित करते हैं कि जितने भी एडवर्स इफेक्ट वाले केस सामने आते हैं, दो से तीन सप्ताह के अंदर इनके कारणों का पता लगा लेते हैं.
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा विकसित एस्ट्रा जेनेका वैक्सीन के साइड इफेक्ट को देखते हुए कई देशों में भारतीय वैक्सीन कोविशिल्ड के जोखिम को कसौटी पर परखा जा रहा है.
क्योंकि कोविशिल्ड भी एस्ट्राजेनेका वैक्सीन की तर्ज पर ही बनी है.
सुरक्षा जोखिम को देखते हुए नीदरलैंड, थाईलैंड, नोर्वे, डेनमार्क, आय़रलैंड, आइसलैंड, बुल्गारिया, लग्जमबर्ग, लिथुआनिया, एस्टोनिया और लटाविया में एस्ट्रा जेनेका वैक्सीन की डोज को स्थगित कर दिया गया है.
हालांकि पिछले सप्ताह डब्ल्यूएचओ (WHO) और यूरोपियन मेडिसीन ऑथोरिटी की सेफ्टी कमिटी ने कहा था कि उपलब्ध डाटा के आधार पर हम यह नहीं कह सकते कि वैक्सीन लेने से ब्लड क्लोटिंग होती है.