CoWin से आपको रजिस्टर कर वैक्सीनेशन का समय बुक करना होता है
नई दिल्ली: CoWin से रजिस्टर कर भारत में अभी तक क़रीब 18.5 करोड़ लोग कोरोना वैक्सीन (Corona Vaccine) लगवा चुके हैं,
जिनमें से ज़्यादातर लोग शहरी और स्मार्टफ़ोन का इस्तेमाल करने के अभ्यस्त हैं.
CoWin से रजिस्टर पर वैक्सीनेशन की प्रक्रिया को लेकर सवाल उठ रहे हैं
कहा जा रहा है कि बहुत सारे लोग जिनके पास टेक्नोलॉजी या उसे इस्तेमाल करने का अभ्यास नहीं है वे इस दायरे से बाहर रह जाएँगे,
और यह संख्या कोई मामूली नहीं है.
वैक्सीनेशन का यही तरीका सरकार ने तय किया है,
जिन्हें स्लॉट बुक करना समझ में नहीं आ रहा है या फिर जो डिजिटल दुनिया से दूर हैं.
Covid 19 के समय में जब लोग सामाजिक दूरी का पालन कर रहे हैं,
आख़िर कौन और कैसे उनकी मदद करेगा?
गांव में स्मार्टफ़ोन का ज्ञान होना,
लोगों को अपने स्मार्टफ़ोन पर ऐप डाउनलोड करना या उन्हें इस्तेमाल करना आता है ?
ऐप के इस्तेमाल का मतलब है कि आपको वैक्सीनेशन के लिए अंग्रेज़ी आनी चाहिए,
Corona Vaccine कम है वैक्सीन लगवाने वाले ज़्यादा, जिस वजह से 18-44 उम्र वर्ग के सभी स्लॉट्स बुक हो जाते हैं.
CoWin ऐप का इस्तेमाल गांव में ख़राब मोबाइल नेटवर्क से मुश्किल हो जाता है.
जब तक वो अपने मोबाइल पर ऐप खोलते हैं,
ओटीपी डालते हैं, वैक्सीन के लिए स्लॉट खोजते हैं, तब तक सभी स्लॉट्स बुक हो जाते हैं.
रजिस्टर करने के बाद मोबाइल समय लेता है,
उस पर बुकिंग नहीं हो पाती.
स्लॉट्स पहले से ही बुक्ड दिखाता है.
सुबह नौ बजे से पांच दस मिनट पहले स्लॉट दिखते हैं लेकिन जैसे ही नौ बजने वाले हुए, स्लॉट बुक दिखते हैं.”
और ये स्लॉट्स ज़्यादातर वो लोग बुक कर लेते हैं जो शहरों में रहते हैं जहां मोबाइल नेटवर्क बेहतर होता है.
मोबाइल पर जितना नेटवर्क चाहिए उतना नहीं मिल रहा है.
शहर वाले लोग लैपटॉप और वाइफ़ाई का इस्तेमाल करते हैं इसलिए वैक्सीन स्लॉट की बुकिंग जल्दी कर पाते हैं. गांव में सबसे नज़दीकी अस्पताल कई किलोमीटर दूर है
गांव में अस्पताल जहां वैक्सीन लग रही है लेकिन गांव के लोगों के मुताबिक वहां वैक्सीन लगवाने वालों में शहरी लोगों की तादाद ज़्यादा है.
गांव के लोगों कहते हैं, “वहां शहरी लोगों Corona Vaccine लगवाने आ रहे हैं,और गांव के लोग देखते रह जाते हैं.” गांव में रहने वाले एक शिक्षक परेशान हैं.
वो कहते हैं, “कोविन ऐप में पहले कैप्चा कोड नहीं था.अब कैप्चा कोड आ रहा है. उससे दिक़्क़त आ गई.
जब मैं कैप्चा कोड डालता हूँ, तो कभी वो ग़लत पड़ जाता है. जब तक आप ग़लती ठीक करें
और कैप्चा कोड दोबारा डालें, वैक्सिनेशन का स्लॉट बुक हो जाता है.”
कैप्चा कोड का इस्तेमाल वेबसाइट पर लॉगिन के दौरान होता है.
भारत में अभी तक क़रीब 18.5 करोड़ लोग वैक्सीन लगवा चुके हैं जिनमें से ज़्यादातर लोग शहरी और डिजिटल टेक्नॉलोजी का इस्तेमाल करने के अभ्यस्त हैं.
और एक आंकड़े के मुताबिक देश की 58.5 प्रतिशत जनसंख्या इंटरनेट से जुड़ी है.
ग्रामीण इलाकों में इंटरनेट से जुड़े लोगों का प्रतिशत 34.6 है.भारत की एक बड़ी जनसंख्या ग्रामीण इलाकों में रहती है
इससे कोविन ऐप और वैक्सिनेशन प्रक्रिया की सीमा का अंदाज़ा लगता है.
“बिना स्मार्टफ़ोन और हाई स्पीड इंटरनेट के ग्रामीण इलाक़ों में रहने वाले नागरिकों के लिए ये ख़ासतौर पर चुनौतीपूर्ण है.
उनके पास कोविन ऐप के इस्तेमाल की जानकारी नहीं है.दूसरी चुनौती है ऐप में गड़बड़ियाँ,
जिस तरह शहरी इलाक़ों से लोग वैक्सीन लगवाने के लिए ग्रामीण इलाकों में जा रहे हैं,
इससे दोनों के बीच झगड़े हुए हैं.”
इस ऐप के इस्तेमाल से डिजिटल असमानता को बढ़ावा मिलता है.
“इस ऐप के इस्तेमाल का मतलब है कि आपको टीकाकरण के लिए अंग्रेज़ी आनी चाहिए,
आपको स्मार्टफ़ोन का ज्ञान होना चाहिए और इन वजहों से देश की एक बड़ी जनसंख्या टीकाकरण दायरे से बाहर हो जाती है.
टेक प्लेटफ़ॉर्म पर भरोसे से विकलांग लोग इन सुविधाओं से वंचित रह जाते हैं.”
डिजिटल असमानता की वजह से टीकाकरण नहीं हो पाने की शिकायत पहुंची है
ग्रामीण इलाकों में वंचित रह रहे लोगों ने प्रशासन से इस मामले को उठाया है.
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