काबुल : Bagram Airbase : भारतीय मूल की अमेरिकी राजनयिक और संयुक्त राष्ट्र में अमेरिका की पूर्व दूत निक्की हेली ने चेतावनी दी है.
कि चीनी ड्रैगन अफगानिस्तान के बगराम हवाई अड्डे पर कब्जा कर सकता है.
यह वही एयरबेस है जहां से अमेरिकी सेना पूरे इलाके में सैन्य हमले करती थी.
उन्होंने यह भी कहा कि चीन पाकिस्तान का इस्तेमाल भारत के खिलाफ अपनी स्थिति को.
और ज्यादा मजबूत करने के लिए कर सकता है.
इए समझते हैं कि बगराम एयरबेस चीन के लिए क्यों बेहद अहम है…
निक्की ने कहा कि तालिबान के अफगानिस्तान पर कब्जा जमाने के बाद
अमेरिका को चीन पर करीबी नजर रखने की आवश्यकता है.
निक्की हेली ने कहा, ‘हमें चीन पर नजर रखने की आवश्यकता है.
क्योंकि मुझे लगता है कि आप चीन को बगराम वायु सेना अड्डे तक कदम बढ़ाते देख सकेंगे.
मुझे लगता है कि वे अफगानिस्तान में भी पैर जमा रहे हैं.
और भारत के खिलाफ मजबूत स्थिति बनाने के लिए पाकिस्तान का इस्तेमाल करने की कोशिश कर रहे है।
इसलिए हमारे सामने कई चुनौतियां हैं।’ उन्होंने कहा कि अब समय आ गया .
कि अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन भारत, जापान.
और ऑस्ट्रेलिया जैसे प्रमुख दोस्तों और सहयोगियों से सम्पर्क कर उन्हें आश्वासन दे.
कि अमेरिका सदैव उनका साथ देगा.
जानें क्यों अहम है बगराम हवाई अड्डा
दरअसल, अमेरिकी सेना ने करीब 20 साल तक कब्जा बनाए रखने के बाद इस साल जुलाई में बगराम वायु सेना अड्डे को रात के अंधेरे में छोड़ दिया था.
जो अफगानिस्तान में उसका अहम सैन्य अड्डा था.
इसके बाद अमेरिकी सेना की काफी आलोचना हुई थी.
बगराम एयरबेस इस पूरे इलाके में सबसे अच्छे एयरपोर्ट में से एक है.
यहां पर दो रनवे की सुविधा है.
और यहां राजधानी काबुल से आना और जाना बेहद आसान है.
यह एयरबेस हमेशा से ही सेना के नियंत्रण में रहा है.
काबुल से इस एयरबेस की दूरी मात्र 40 किलोमीटर है.
2001 से अमेरिका के नियंत्रण में था यह बेस
बगराम एयरफोर्स बेस साल 2001 से अमेरिका के नियंत्रण में था.
पाकिस्तान के एबटाबाद में छिपे ओसामा बिन लादेन को मारने के लिए
अमेरिकी नेवी सील कमांडो बगराम एयरबेस पर ही ट्रेनिंग ली थी.
बाद में ये कमांडो जलालाबाद एयर बेस से रवाना हुए थे.
इसी बेस पर अफगानिस्तान में एयर ऑपरेशन की कमान संभालने वाले कमांडर का ऑफिस भी था.
इस एयरफील्ड को 1950 के दशक में सोवियत संघ ने बनाया था.
1979 में जब सोवियत संघ ने अफगानिस्तान पर हमला किया तो यह बेस उसके लिए मेन अड्डा बन गया.
अमेरिकी राष्ट्रपति ने किया था Bagram Airbase का दौरा
कोल्ड वॉर के समय अफगानिस्तान के प्रधानमंत्री दाऊद खान के अमेरिका दौरे के बाद
9 दिसंबर 1959 को अमेरिकी राष्ट्रपति डी आइजनहोवर बगराम हवाई ठिकाने पर उतरे थे.
उस समय खुद अफगानिस्तान के तत्कालीन राजा मोहम्मद जहीर शाह ने अमेरिकी राष्ट्रपति का स्वागत किया था.
इसके बाद उनका काफिला काबुल के लिए रवाना हुआ था.
इस दौरान रास्तेभर में अफगानिस्तान के लोग बड़ी संख्या में मौजूद थे.
और उनका गर्मजोशी के साथ स्वागत किया था.
Bagram Airbase का काला इतिहास
अमेरिकी सैनिकों के यहां आने के बाद इस एयरबेस के आकार को बढ़ाया गया ताकि सैन्य विमान उतर सकें.
इस एयरबेस का एक काला इतिहास भी है.
इसके एक इस्तेमाल नहीं किए जाने वाले हैंगर को अमेरिकी सैनिकों ने डिटेंशन सेंटर में
बदल दिया था जहां पर आतंकियों को तरह-तरह से प्रताड़ित करके उनसे पूछताछ की जाती थी.
इसे अमेरिकी बगराम कलेक्शन प्वाइंट बताते थे.
वर्ष 2002 दो कैदियों को इतना ज्यादा प्रताड़ित किया गया कि उनकी मौत हो गई.
एक समय पर यहां पर 3000 कैदी मौजूद थे.
चीन की Bagram Airbase पर क्यों है नजर
बगराम एयरपोर्ट के इसी रणनीतिक महत्व को देखते हुए चीन उस पर अपना कब्जा करना चाहता है.
अगर ऐसा होता है तो चीन पूरे अफगानिस्तान में अपनी पकड़ मजबूत कर लेगा.
यह चीनी सेना के लिए एक और विदेशी ठिकाने में बदल सकता है.
आगे चलकर चीन की मंशा है कि अफगानिस्तान के प्राकृतिक संपदा को लूटकर अपने देश ले जाने की है।
अफगानिस्तान में करीब एक ट्रिल्यन डॉलर का सोना, तांबा, लिथियम आदि छिपा हुआ है.
चीन इस पर कब्जा करना चाहता है.
अगर अफगानिस्तान में फिर अशांति आती है तो चीनी सेना इस हवाई अड्डे की मदद से हिंसा को कुचल सकती है.