Gandhi jayanti: पॉलिश किए गए अनाज के खिलाफ थे महात्मा गांधी

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Gandhi jayanti

हेल्थ डेस्क,लोक हस्तक्षेप

Gandhi jayanti: महात्मा गांधी की आत्मकथा, लोकप्रिय पुस्तक ‘माई एक्सपेरिमेंट्स विद ट्रुथ’ के बारे में काफी लोग जानते हैं.

लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि भोजन और आहार पर भी एक बुक लिखी थी.

Gandhi jayanti आज देश और दुनियाभर में लाखों लोग मना रहे हैं.

गांधी जी जितना अहिंसा और स्वदेशी में विश्वास करते थे, उतना ही प्रयोग उन्होंने आहार सुधारों में भी किया है.

महात्मा गांधी की किताबें ‘डाइट एंड डाइट रिफॉर्म्स, ‘द मोरल बेसिस ऑफ वेजिटेरियनिज्म’

और ‘की टू हेल्थ’ हेल्थ और डायट पर बेस्ड हैं.

महात्मा गांधी अपनी किताबों में खाद्य प्रयोगों और प्रक्रिया के दौरान,

उनके द्वारा किए गए खुलासे के बारे में बात करती हैं.

हम आपको गांधी जी की इंटरमिटिंग फास्टिंग से लेकर पैलियो डाइट तक,

उनके भोजन के साथ प्रयोगों के बारे में बताते हैं.

अपनी यात्रा में गांधी जी कई दिनों तक भूखे रहते थे बावजूद इसके उन्होंने कभी भी चलना नहीं छोड़ा.

धीरे-धीरे एक ऐसे आंदोलन का नेतृत्व किया जिसका हमारे स्वतंत्रता संग्राम पर प्रभाव ऐतिहासिक है.

उनके बारे में कहा जाता है कि वे अपने जीवनकाल में 79000 किलोमीटर पैदल चले,

जो कि 18 किलोमीटर प्रति दिन के बराबर है.

पाचन तंत्र को आराम देने के साधन के रूप में उपवास में दृढ़ विश्वास रखने वाले,

गांधीजी ने इसे जीवन का एक तरीका बना दिया था.

उन्होंने फास्टिंग को अक्सर एक राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया.

वे उपवास को स्वस्थ रहने के लिए सबसे शक्तिशाली तरीकों में से एक बताते थे.

महात्मा गांधी ने अपनी मां से वादा किया था कि वह इंग्लैंड में मांस नहीं खाएंगे.

लेकिन साथियों के दबाव और शाकाहारी विकल्पों की उपलब्धता में कठिनाई के कारण,

यह उनके लिए बेहद मुश्किल हो रहा था.

हालांकि उन्हें बाद में एक शाकाहारी रेंस्त्रा मिला जो कि किताबें भी बेचता था.

इसी बीच उनकी नजर दुकान में रखीं किताबों पर पड़ी.

उन्होंने देखा एक बुक में शाकाहार के लिए नमक की दलील दी गई है.

उन्होंने इस पुस्तक को पढ़ने के बाद अपनी पसंद से शाकाहारी बनने का दावा किया.

ये बातें उन्होंने अपनी बुक Diet and Diet Reforms में लिखी हैं.

Gandhi jayanti: गांधी जी अपनी आत्मकथा में कहते हैं, ‘मैंने मिठाइयां और मसाले लेना बंद कर दिया… मैंने एक नियम के रूप में चाय और कॉफी छोड़ दी और कोको की जगह ले ली.’

उन्होंने चीनी को हानिकारक स्वीटनर माना और गुड़ के इस्तेमाल पर जोर दिया.

‘गुड़ जिसमें 2 से 1 के अनुपात में गन्ना-चीनी और फल-शर्करा होता है,

इसलिए, गुड़ का पोषक मूल्य रिफाइंड चीनी की तुलना में कम से कम 33 प्रतिशत बेहतर है’.

गांधीजी ने हरिजन में लिखा है कि शहद को गर्म पानी के साथ नहीं लिया जाना चाहिए.

उनके कई खाद्य प्रयोगों में दूध को कोई स्थान नहीं मिला

और गांधीजी ने दूध के प्रति एक निश्चित अवहेलना की,

लेकिन वे इससे मिलने वाले कई स्वास्थ्य लाभों से मुंह नहीं मोड़ सके.

गांधी जी ने ‘यंग इंडिया’ में लिखा है कि ‘मेरे अपने प्रयोग अधूरे और दूध रहित दोनों तरह के हैं,

फिर भी मैं किसी को दूध और घी से परहेज करने की सिफारिश नहीं करता हूं.’

बापू, बादाम का दूध भी खुद बनाकर पिया करते थे जिसमें सैचुरेटिड फैट नहीं होता है.

जैसा कि बहुत से आयुर्वेदिक डॉक्टर भी दावा करते हैं.

अपनी पुस्तक हरिजन में गांधीजी ने लिखा है कि,

‘गेहूं की भूसी निकालने पर पोषण का भयानक नुकसान होता है.

ग्रामीण और अन्य जो अपनी चक्की में साबुत गेहूं का आटा खाते हैं, वे अपना पैसा बचाते हैं

और इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि उनका स्वास्थ्य भी सुरक्षित रहता है.’

गांधी जी पूरी तरह से पॉलिश किए गए अनाज के खिलाफ थे.

उनका मानना था कि रिफांइड होने के बाद सफेद और छिलके वाले अनाज अपना सारा पोषण खो देते हैं.

गांधी जी ने एक साथ कई दिनों तक कच्चा खाना खाकर कई प्रयोग किए.

हालांकि वह मानते हैं कि इससे कभी-कभी कमजोरी होती है,

लेकिन अगर दूध और थोड़ी मात्रा में घी का सेवन किया जाए,

तो यह शरीर को शुद्ध और पोषण देने का एक शानदार तरीका है.

यह मस्तिष्क को भी साफ करता है और शांत करता है.

गांधी जी के अनुसार, बिना पका हुआ भोजन या कच्चा भोजन, अपने शुद्धतम रूप में भोजन है.

इसमें शामिल सलाद, स्प्राउट्स, कई फल और सब्जियां काफी सस्ते और स्वास्थ्यवर्धक भी हैं.

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