Sputnik V vaccine देने वाले रूस में कोरोना खतरनाक रूप में

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Sputnik V vaccine

मॉस्को: Sputnik V vaccine तैयार करने वाले रूस में वैक्सीनेशन यानी टीकाकरण की रफ्तार बेहद कम है.

दुनिया को सबसे पहली कोरोना वैक्सीन देने वाले, देश रूस में कोरोना खतरनाक रूप धारण कर रहा है.

रूस में शनिवार को कोरोना से 1075 मरीजों की मौत हो गई.

इसी के साथ वो कोरोना का सबसे पहले कहर झेलने वाले इटली,

स्पेन, फ्रांस जैसे देशों को पीछे छोड़ते हुए यूरोप का कोविड महामारी से प्रभावित सबसे बड़ा देश बन गया.

दरअसल, सबसे पहले कोविड वैक्सीन स्पूतनिक वी तैयार करने वाले रूस में वैक्सीनेशन यानी टीकाकरण की रफ्तार बेहद कम है.

रूस बढ़ते मामलों को देखते हुए अगले हफ्ते से देश के बड़े शहरों में फिर से पाबंदियां लागू करने जा रहा है.

रूस के राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन ने लोगों से टीकाकरण में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेने की गुहार लगाई है.

Sputnik V vaccine देश में पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध भी है,लेकिन वैक्सीनेशन को लेकर लोगों में ज्यादा उत्साह नहीं दिख रहा है.

रूस में अभी तक 36 फीसदी आबादी का ही पूर्ण टीकाकरण हो पाया है.

जबकि अगस्त 2020 में उसने विश्व में सबसे पहले कोविड वैक्सीन का विकास कर लेने का दावा किया था

और डब्ल्यूएचओ द्वारा आपात इस्तेमाल की मंजूरी मिलने के पहले इसका टीकाकरण भी शुरू कर दिया था.

शनिवार को रूस में कोरोना के रिकॉर्ड 37,678 नए मरीज भी मिले.

रूस में कोरोना से जान गंवाने वाले कुल मरीजों की तादाद 229, 528 तक पहुंच गई है,

जो यूरोप में सबसे बड़ा आंकड़ा है.

ये आधिकारिक संख्या तब है, जब रूस में अधिकारियों पर कोरोना के मामलों और मौतों के आंकड़े छिपाने का आरोप लगता रहा है.

कुछ एजेंसियों का कहना है कि रूस में ही 4 लाख से ज्यादा लोग कोरोना के कारण जान गंवा चुके हैं.

रूस की राजधानी मॉस्को कोरोना महामारी का सबसे बड़ा केंद्र बन गया है.

मॉस्को में 28 अक्टूबर से 7 नवंबर तक गैर जरूरी सेवाएं बंद रहेंगी.

राष्ट्रपति पुतिन ने कोविड-19 पर काबू पाने के लिए कर्मचारियों को 30 अक्टूबर के पेड लीव देने का आदेश जारी किया है.

पुतिन ने खुद आमने-सामने की मुलाकातें बंद कर दी हैं.

रूसी राष्ट्रपति ने कहा था कि देश में कोरोना से रोजाना इतनी ज्यादा मौतों का कारण वैक्सीनेशन की कम दर है.

ऐसे में लोगों को जिम्मेदारी दिखानी चाहिए.

स्पूतनिक वी का इस्तेमाल कई देश कर रहे हैं,

हालांकि यूरोपीय संघ (EU) या विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे मान्यता नहीं दी है.

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