गोरखपुर से आखिर सीएम Yogi Adityanath क्‍यों लड़ रहे?

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लखनऊ: Yogi Adityanath के जब अयोध्‍या से लड़ने की चर्चा थी कि पार्टी सीएम को अयोध्या से उतार सकती हैं.

तो गोरखपुर में भी सियासी चर्चाएं तेज हो गई थीं.

कभी अयोध्‍या तो कभी मथुरा, आखिरकार सीएम योगी के लड़ने के लिए भाजपा ने गोरखपुर सीट फाइनल कर दी है.

भाजपा और हिन्‍दूवादी संगठनों से जुड़े लोग सवाल उठा रहे थे कि आखिर सीएम गोरखपुर से क्‍यों नहीं लड़ रहे?

Yogi Adityanath: दरअसल गोरखपुर सदर विधानसभा सीट पर जीत और हार के समीकरण गोरखनाथ मंदिर में तय होते हैं.

गोरखपुर के मेयर सीताराम जायसवाल ने तो भाजपा नेतृत्‍व से सीएम को गोरखपुर की नौ में से,

किसी सीट से चुनाव लड़ा देने की मांग तक कर दी थी.

बीजेपी नेताओं-कार्यकर्ताओं से मिले ऐसे फीडबैक के बाद शनिवार को,

भाजपा ने 105 उम्‍मीदवारों की पहली लिस्‍ट में सीएम के गोरखपुर शहर की सीट से चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया.

सीएम योगी आदित्‍यनाथ गोरखपुर सदर सीट से ही 1998 से 2017 तक सांसद रहे हैं.

2017 में उत्‍तर प्रदेश के मुख्‍यमंत्री बनने के बाद उन्‍होंने गोरखपुर सदर संसदीय सीट छोड़ी.

वह विधानपरिषद के लिए चुने गए. 2022 में वह पहली बार विधानसभा का चुनाव लड़ेंगे.

बीजेपी के रणनीतिकारों का साफ कहना था कि सीएम योगी गोरखपुर से लड़ेंगे तो इसका फायदा पूर्वांचल की तमाम सीटों के साथ पूरे प्रदेश में भाजपा को मिलेगा.

Yogi Adityanath:गोरखपुर में प्रचार-प्रसार का सीएम का अपना तंत्र है. यहां भाजपा के अलावा हिन्‍दू युवा वाहिनी का मजबूत संगठन है.

गोरखपुर सदर विधानसभा सीट पर पिछले 33 वर्षों से भगवा का कब्‍जा रहा है.

इन 33 वर्षों में कुल आठ चुनाव हुए जिनमें से सात बार भाजपा और एक बार हिन्‍दू महासभा (योगी आदित्‍यनाथ के समर्थन से) के उम्‍मीदवार ने जीत हासिल की है.

वर्ष 2002 में इस सीट से डा.राधा मोहन दास अग्रवाल अखिल भारतीय हिन्‍दू महासभा के बैनर तले जीते थे,

लेकिन जीतने के बाद वह भाजपा में शामिल हो गए थे.

तबसे लगातार वह इस सीट से जीतते आ रहे हैं.

गोरखपुर सदर विधानसभा सीट पर जीत और हार के समीकरण गोरखनाथ मंदिर में तय होते हैं.

1989 से पहले इस सीट पर कांग्रेस का कब्‍जा हुआ करता था.

1989 में भाजपा ने शिव प्रताप शुक्ला को गोरखपुर सदर सीट से अपना उम्‍मीदवार बनाया

और वह जीतकर विधानसभा में पहुंचे.

तब से उनकी जीत का सिलसिला लगातार चार चुनाव तक जारी रहा.

लेकिन 2002 के चुनाव में गोरखपुर की राजनीतिक परिस्थितियां कुछ ऐसी बनीं,

कि शिवप्रताप के मुकाबले गोरखनाथ मंदिर के समर्थन से अभाहिम के बैनर तले डा. राधा मोहन दास अग्रवाल मैदान में उतर आए.

उस चुनाव में जीत का सेहरा डा.राधा मोहन दास अग्रवाल के सिर बंधा.

हालांकि जीतने के बाद वह भाजपा के हो गए और तबसे भाजपा में ही हैं.

उस चुनाव में डॉ. राधा मोहन दास अग्रवाल को 38830 वोट मिले थे,

जबकि समाजवादी पार्टी के उम्‍मीदवार रहे प्रमोद टेकरीवाल ने 20382 वोट हासिल किए थे.

लगातार चार बार चुनाव जीतने वाले शिव प्रताप शुक्ला को 14509 वोट मिले थे.

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