नई दिल्ली:CJI:भारत का संविधान और उसकी मूल भावनाओं को कई देशों ने अपने संविधान का आधार बनाया है.
ग्लोबल और लोकल का अद्भुत तालमेल है भारत का संविधान.
यह विचार चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI)डीवाय चंद्रचूड़ ने अमेरिकन बार एसोसिएशन (ABA)की तीन दिवसीय कॉन्फ्रेंस का उद्घाटन करते हुए व्यक्त किए.
सम्मेलन का विषय “लॉ इन एज ऑफ ग्लोकलाइजेशन: कन्वर्जेंस ऑफ इंडिया एंड द वेस्ट” था.
संविधान का जिक्र करते हुए कहा कि जब इसका मसौदा तैयार किया गया था,
तो संविधान निर्माताओं को यह पता नहीं था कि हम किस दिशा में विकसित होंगे.
उस समय कोई निजता, इंटरनेट, एल्गोरिदम और सोशल मीडिया नहीं था.
CJI ने कहा, “वैश्वीकरण ने अपने स्वयं के असंतोष को जन्म दिया है.
दुनियाभर में मंदी का अनुभव होने के कई कारण हैं.
वैश्वीकरण विरोधी भावना में उछाल आया है जिसकी उत्पत्ति उदाहरण के लिए 2001 के आतंकी हमलों में निहित हैं.
2001 के हमलों ने दुनिया को ऐसे हमलों की कड़वी सच्चाई के सामने ला दिया, जिसे भारत देखता आ रहा था.
जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि क्लाइमेट चेंज कोई अभिजात्य धारणा नहीं है
और तटीय राज्यों के देशों के लिए एक कठोर वास्तविकता है.
CJI ने सोशल मीडिया पर कहा कि झूठी खबरों के दौर में सच ही शिकार हो गया है.
आप जो कुछ भी करते हैं उसके लिए आपको किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा ट्रोल किए जाने का खतरा होता है
जो आपसे सहमत नहीं है.लोगों में धैर्य और सहनशीलता की कमी हो रही है.
कोविड महामारी को जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, “कोविड ने देशों को अपनी सीमा बंद करने पर मजबूर होना पड़ा. आबादी में निचले स्तर पर रहने वाली आधी दुनिया को ग्लोबलाइजेशन का ज्यादा फायदा नहीं मिला.
उनके लिए लोकलाइजेशन से उम्मीद बढ़ी लेकिन ग्लोबलाइजेशन से उनको काफी फायदा मिलेगा.
अंधेरे के उस पार की चीजें भी दिखने लगेंगी और मिलेंगी. कोविड ने डिजिटल मार्केट प्लेस और नए आइडियाज दिए, सस्टेनेबल डिवेलपमेंट के एजेंडा दिए.
नए फ्रेम वर्क और टास्क दिए.
CJI ने कहा कि कोविड ने एक डिजिटल मार्केट प्लेस तैयार किया है जिसने भीतर काम करने का महत्व दिखाया है.
कोविड ने हमें सिखाया कि हम एक-दूसरे से अलग-थलग रह सकते हैं लेकिन क्या यह एक स्थायी मॉडल है?
सीजेआई ने कहा कि अमेरिका के हवाई और भारत के बीच विधि और न्याय के क्षेत्र मे नए पुल बनाना चाहते हैं.
हमारा संविधान ग्लोबलाइजेशन से पहले ही ग्लोब्लाइजेशन (वैश्वीकरण) का आदर्श रहा है.
उन्होंने कहा कि सात दशकों में बदलाव ये आया है कि खुलापन बढ़ा है सीमाएं खुली है.
खुलेपन की हवा चली तो डेटा प्रोटेक्शन, कारोबारी मध्यस्थता, दिवालिया नियमों कानूनों को लेकर साझा कानूनों की जरूरत पड़ी.
ये ग्लोबल करंसी ऑफ ट्रस्ट की तरह है. ये पूरी दुनिया के साझा इस्तेमाल की जरूरत है.
CJI ने सोशल मीडिया पर कहा कि झूठी खबरों के दौर में सच ही शिकार हो गया है.
आप जो कुछ भी करते हैं उसके लिए आपको किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा ट्रोल किए जाने का खतरा होता है जो आपसे सहमत नहीं है. लोगों में धैर्य और सहनशीलता की कमी हो रही है.
हम अलग-अलग दृष्टिकोणों को स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं. सोशल मीडिया के प्रसार के साथ जो कहा गया है वो ऐसा बन जाता है जिसे वैज्ञानिक जांच से रोका नहीं जा सकता.
उन्होंने कहा कि न्याय देने का तरीका बदल रहा है. अब का दौर आइडियाज के वैश्वी करण का है.
तकनीक हमारा जीवन बदल रही है. हम जजों का जीवन भी बदला है.
कोविड के लॉक डाउन के शुरुआत में तब के चीफ जस्टिस ने हमसे पूछा था कि क्या हमें अपने दरवाजे भी बंद कर देने चाहिए.
फिर हमने बात कर हर कोर्टरूम में डेस्कटॉप, लैपटॉप, इंटरनेट का इंतजाम कराकर जनता के लिए न्याय और उनकी आजादी सुरक्षित संरक्षित की.
वीडीओ कॉन्फ्रेंस से सुनवाई का नया दौर शुरू हुआ.
ब्रिटिश राज युग का आईपीसी और सीआरपीसी अद्भुत कानून है.
हमने इतने दशकों में उसे अपने अनुभव, प्रयोगों और मेधा से और ज्यादा सशक्त और व्यवहारिक बनाया है.
उन्होंने कहा हमारे यहां सुप्रीम कोर्ट में भी ऑनलाइन, ई-फाइलिंग का इंतजाम किया है.
हमने लाइव स्ट्रीम शुरू कर दी हैं ताकि जनता को भी पता चले कि कोर्ट में होने वाली सुनवाइयां क्या वाकई बोरिंग होती हैं!
सुप्रीम कोर्ट के दिए हजारों फैसले अब क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवाद की जा रहे हैं.
उन्होंने कहा, “अब वो फैसले जनता को मुफ्त में मिल रहे हैं. पक्षकारों को, वकीलों की, कानून के छात्रों को,
शोध करने वालों को पता है कि अपनी भाषा में फैसले पढ़ने की ये मुफ्त सुविधा उनके लिए कितनी अहम है.
हम आर्टिफिशिएल इंटेलीजेंस की नई तकनीक का भी इंतजाम कर रहे हैं.
रियल टाइम बहस दलीलों और सुनवाई का ट्रांसक्रिप्शन शाम तक लोगों को मिल जा रहा है.
मद्रास आईआईटी इसमें अहम योगदान कर रही है.ह मारे सुप्रीम कोर्ट में पेपरलेस सुनवाई हो रही है.
बिना कागज पत्र के इलेक्ट्रानिक तौर पर सुनवाई होती है.
ट्रैफिक चालान और उनका भुगतान ई-कोर्ट के जरिए हो रहा है. जनता और न्यायपालिका दोनों को सुविधा है.
CJI ने कहा, ” हमारे यहां ये सवाल अकसर पूछा जाता है कि हमारे सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में जितनी महिला जजों की संख्या होनी चाहिए उतनी हैं नहीं.
ये इस पर निर्भर करता है कि इस पेशे में कितनी महिलाएं आती हैं? बार में कितनी महिला वकील रजिस्ट्रेशन कराती हैं.
लड़कियों की शिक्षा पर खासकर मध्य वर्ग परिवारों में इस पर ध्यान बढ़ाया जा रहा है.
उन्होंने कहा कि कई राज्यों में अब निचली जिला न्यायपालिका में 50-60% जज महिलाएं हैं.
यह हम पर है कि हम उन लोगों के लिए सम्मान की स्थिति पैदा करें जिन्हें हम पेशे में भर्ती करते हैं.