RSS:दशहरा 2023 को 98 साल का हुआ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

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RSS( राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) ने दशहरा 2023 को अपना 98 साल पूरा कर लिया है. 1925 में गठित आरएसएस के देश भर में 1 करोड़ से ज्यादा सदस्य हैं.

RSS की स्थापना के बाद से कई बार विवादों रहने वाले इस संगठन पर 3 बार बैन भी लग चुका है.

पहली बार बैन महात्मा गांधी की हत्या के बाद लगा था.

उस वक्त केंद्र सरकार को शक था कि गांधी की हत्या के पीछे आरएसएस की साजिश है.

पहली बार संघ प्रमुख समेत संगठन के बड़े नेताओं को जेल भेजा गया था.

दूसरी बार आपातकाल के दौरान संघ पर बैन लगा.

संघ के सभी कार्यकर्ताओं को मीसा कानून के तहत जेल भेजा गया.

तीसरी बार 1992 में संघ पर बैन लगा और इस बार आरएसएस पर द्वेष फैलाने का आरोप था.

हालांकि, इस बार बैन की मियाद सिर्फ 6 महीने की थी.

संघ का अपना संविधान भी है, जो 1949 में बनाया गया था.

इस संविधान में कुल 25 अनुच्छेद हैं, जिसके हिसाब से संघ अपने कामकाज को संचलित करता है.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की स्थापना

कांग्रेस से अलग होकर साल 1925 में केशव बलिराम हेडगवार ने प्रथम विश्व युद्ध में बनी यूरोपियन राइट-विंग की तरह एक संगठन की स्थापना की.

इसका नाम रखा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, जो बाद में संघ के नाम से ज्यादा चर्चित हुआ.

संघ पर शोध कर चुके विदेशी लेखक वाल्टर एंडरसन के मुताबिक दिसंबर 1920 में ही हेडगवार ने आरएसएस की परिकल्पना की थी.

दरअसल, 1920 में नागपुर में ही कांग्रेस कार्यसमिति का वार्षिक अधिवेशन हुआ था.

हेडगेवार ने इसका विरोध किया और कुछ युवकों के साथ अलग से कार्यक्रम आयोजित करवाए.

इसमें शामिल होने वाले अधिकांश ब्राह्मण युवक थे.

हेडगेवार का मानना था कि जब तक देश का हिंदू (बहुसंख्यक) एकजुट नहीं होगा, तब तक आजादी का कोई ज्यादा मतलब नहीं है.

हेडगेवार अक्सर कहते थे- भले ही अंग्रेज चले जाएं, जब तक हिंदू एक शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में संगठित नहीं होंगे, इसकी क्या गारंटी है कि हम अपनी स्वतंत्रता की रक्षा कर पाएंगे?

शुरू में संगठन का काम सिर्फ नागपुर में संचलित होता था.

यहां हेडगेवार के नेतृत्व में कुछ युवक सुबह शाखा लगाते थे और शाम को लोगों को जागरूक करते थे.

धीरे-धीरे संघ का विस्तार नागपुर के आसपास के इलाकों में भी होने लगा.

संघ का शुरुआती मिशन भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने की थी, जिसे 1947 के बाद बदला गया.

संघ के संविधान के मुताबिक यह संगठन हिंदुओं को एकजुट करेगा और उन्नत राष्ट्र बनाने के लिए काम करेगा.

 कैसे काम करता है आरएसएस?

राष्ट्रीय स्वंय सेवक का मुख्य काम हिंदुओं को संगठित करना और उसके जीवनशैली में सुधार लाना है.

इसके लिए संघ में शाखा की स्थापना की गई है.

शाखा संघ का सबसे निचले स्तर की इकाई हैं, जिसके जरिए लोगों से सीधे तौर पर संपर्क साधा जाता है.

शाखा में सदस्य और एक मुख्य शिक्षक होते हैं.

वर्तमान में देशभर में आरएसएस की 42,613 स्थानों पर 68,651 दैनिक शाखाएं चल रही हैं.

आरएसएस के आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक देश के 901 जिलों में 26,877 साप्ताहिक बैठकें होती हैं. संघ में मंडली की संख्या 10,412 है.

शाखा के सदस्यों को स्वयंसेवक कहा जाता है.

18 साल से अधिक उम्र के कोई भी व्यक्ति स्वयंसेवक बन सकता है.

संघ का सभी बड़े फैसले केंद्रीय कार्यकारिणी मंडल और अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में लिया जाता है.

इस फैसले को जमीन पर उतारने का काम प्रचारकों का होता है.

प्रचारक प्रांतीय सभा के जरिए शाखा से संपर्क साधकर लोगों तक अपना संदेश पहुंचाते हैं.

शारीरिक क्रियान्वयन के अलावा संघ शैक्षणिक क्रियाकलाप के जरिए भी लोगों तक अपनी पहुंच बनाता है.

इसके लिए संघ देश के कई हिस्सों में सरस्वती विद्या मंदिर जैसे छोटी पाठशालाएं संचलित करता है. इन पाठशालाओं में संघ के पदाधिकारी ही पढ़ाते हैं.

विश्व संवाद केंद्र के जरिए संघ अपना विचार बौद्धिक जगत के लोगों तक पहुंचाता है.

यह केंद्र देश के अलग-अलग हिस्सों में स्थापित है.

संघ के संविधान के मुताबिक इसकी संरचना को 8 भागों में बांटा गया है, जो निम्नलिखित है.

1. सरसंघचालक- यह संघ का प्रमुख होता है और इसे संघ का दार्शनिक भी कहा जात है.

वर्तमान में मोहन भागवत संघ के प्रमुख हैं. संघ के संविधान में सरसंघचालक को परोक्ष रूप से कोई शक्ति नहीं दी गई है.

सरसंघचालक सिर्फ संघ और वर्तमान मुद्दे पर अपनी राय रखते हैं.

वाल्टर एंडरसन के मुताबिक संघ प्रमुख का चुनाव नहीं होता है. यह पद चयन का पद है.

RSS:एंडरसन के मुताबिक 1940 से ही यह प्रक्रिया चल रही है. पहली बार हेडगेवार ने चिट के जरिए गुरु गोवलकर को संघ का सरसंघचालक पद पर नियुक्त किया था.

द ब्रदरहुड इन सैफरन में एंडरसन और श्रीधर दामले लिखते हैं- गोवलकर जब संघ प्रमुख चुने गए,

तो उस वक्त अप्पाजी जोशी समेत कई लोग उनसे वरिष्ठ थे,

लेकिन हेडगेवार ने चिट पर गोवलकर का ही नाम लिखा.

तब से चिट के जरिए ही सरसंघचालक का चुनाव होता है.

एक कॉन्कलेव में मोहन भागवत ने चुनाव नहीं कराने के पीछे तर्क दिया था.

भागवत के मुताबिक इस पद पर बड़े लोग रहे हैं, इसलिए इसे श्रद्धा का पद माना जाता है.

संघ प्रमुख कब तक अपने पद पर रहेंगे, वो ही यह फाइनल करेंगे.

यानी उन्हें जबरन पद से भी नहीं हटाया जा सकता है.

संघ में नया प्रमुख यानी सरसंघचालक कौन बनेगा, यह फैसला भी तत्कालीन प्रमुख ही लेता है.

2. सरकार्यवाह- संघ के मुख्य कार्यकारी अधिकारी को सरकार्यवाह कहते हैं.

आमतौर पर इसे संघ का महासचिव भी कहा जाता हसंघ के कामकाज की समीक्षा,

पदाधिकारियों की नियुक्ति जैसे काम सरकार्यवाह ही करते हैं.

संघ के संविधान के अनुच्छेद 13 में सरकार्यवाह के कामकाज के बारे में बताया गया है.

सरकार्यवाह ही अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा और केंद्रीय कार्यकारिणी मंडल की बैठक आहूत करते हैं.

सरकार्यवाह का चुनाव हरेक 3 साल पर होता है.

सरकार्यवाह एक से अधिक बार अपने पद पर रह सकते हैं.

हालांकि, इसके लिए प्रतिनिधि सभा की मंजूरी लेना अनिवार्य है.

आम तौर पर सबसे वरिष्ठ सहसरकार्यवाह को ही सरकार्यवाह बनाया जाता है.

3. केंद्रीय कार्यकारिणी मंडल- संघ के संविधान के अनुच्छेद-14 में केंद्रीय कार्यकारिणी मंडल के बारे में बताया गया है.

यह सबसे शीर्ष इकाई है, जिसमें संघ के लक्ष्य की समीक्षा की जाती है.

केंद्रीय कार्यकारिणी मंडल में ही पदाधिकारियों के कामकाज का मूल्यांकन भी किया जाता है.

इसकी बैठक हर 4 महीने पर आयोजित की जाती है.

केंद्रीय कार्यकारिणी मंडल का नेतृत्व सरकार्यवाह करते हैं.

एक या उससे ज्यादा सहसरकार्यवाह,संघ के शारीरिक प्रमुख, नीधि प्रमुख, बौद्धिक प्रमुख और प्रचार प्रमुख इसके सदस्य होते हैं.

संघ के हिसाब-किताब को ऑडिट करने के लिए केंद्रीय कार्यकारिणी मंडल की एक ऑडिटर को नियुक्त करता है.

4. अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा- संघ के भीतर नीतिगत फैसला अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में ही लिया जाता है.

अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में संघ के सभी 34 संगठनों के पदाधिकारी शामिल होते हैं.

संघ के मुखपत्र ऑर्गेनाइजर के मुताबिक मार्च 1950 में पहली बार नागपुर में अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक हुई थी.

प्रतिनिधि सभा की बैठक 1 साल पर आयोजित की जाती है.

सभा की बैठक में बड़े मुद्दों पर विचार किया जाता है और इसके बाद संघ के निर्णय पर पहुंचता है.

प्रतिनिधि सभा की बैठक के बाद सरकार्यवाह पत्रकारों से बात करते हैं

और संघ के एजेंडा को लोगों के सामने रखते हैं.

इस साल प्रतिनिधि सभा में संघ ने सैम सेक्स मैरिज का विरोध किया था.

5. संघचालक- संघ के अनुच्छेद 16 में संघचालक पद के बारे में विस्तार से बताया गया है.

यह पद प्रांत (राज्य, जिला, शहर) के आधार पर बनाया जा सकता है. इस पद के लिए चुनाव कराया जाता है.

प्रांत में संघ के विस्तार की जिम्मेदारी इन्हीं पर होती है.

6. प्रचारक- संघ में जमीन से जुड़ा यह पद सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है. संघ के संविधान के मुताबिक प्रचारक पूर्णकालिक सदस्य होते हैं.

संघ के प्रचार प्रमुख ही प्रचार को नियुक्त करते हैं. हालांकि, सरकार्यवाह की हामी जरूरी माना जाता है.

प्रचारक क्षेत्रीय कामकाज को देखते हुए अपने अंदर कई प्रांत प्रचारक को नियुक्त कर सकते हैं.

ऐसे ही जिला प्रचारक और तहसील प्रचारक का पद बनाया जाता है.

प्रचारक के संबंध में अंतिम फैसला लेने का अधिकार सरकार्यवाह के पास होता है.

7. प्रांतीय कार्यकारी मंडल- राज्य, जिला और ब्लॉक स्तर पर फैसला लेने का अधिकारी प्रांतीय कार्यकारी मंडल के पास होता है.

इस मंडल में संघचालक, प्रचारक, नीधि प्रमुख और बौद्धिक प्रमुख शामिल होते हैं.

इसकी बैठक भी प्रत्येक 4 महीने में आयोजित की जाती है.

प्रांतीय कार्यकारिणी की बैठक में जमीन पर किए गए कामों की समीक्षा की जाती है और उसकी रिपोर्ट उच्च स्तर पर भेजा जाता है.

प्रांतीय कार्यकारी मंडल के पास किसी भी स्वयंसेवक पर अनुशासनात्मक कार्यवाई करने का अधिकार होता है.

8. प्रांतीय सभा- संघ के भीतर प्रांतीय सभा का भी स्वरूप है. प्रांतीय सभा की बैठक साल में 1 बार आयोजित किया जाता है. इस बैठक में संघ के विस्तार पर सबसे ज्यादा चर्चा होती है.

प्रांतीय सभा की रिपोर्ट के आधार पर ही संघ अपना फैसला लेता है. प्रांत संघचालक प्रांतीय सभा के प्रमुख होते हैं.

संघ की पूरी इकॉनोमी चंदा और उपहार के सहारे है.

संगठन के संविधान के मुताबिक संघ से जुड़े किसी भी ब्रांच या व्यक्ति को अगर कोई दान या उपहार मिलता है,

तो वह संघ के फंड में जाएगा.

संघ में फंड मैनेजमेंट का काम प्रांत स्तर पर संघचालक और निधि प्रमुख का होता है.

हालांकि, संघ अपने आय और व्यय को सार्वजनिक नहीं करता है.

कोरोना के वक्त संघ के इनकम पर विवाद भी हुआ था.

नागपुर के एक कार्यकर्ता ने ईडी से शिकायत की थी कि आरएसएस न तो कोई ट्रस्ट है और न ही एनजीओ, तो फिर इसके पास लाखों-करोड़ों रुपए कहां से आए?

हालांकि, यह मामला ज्यादा आगे नहीं बढ़ पाया.

2014 में नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद आरएसएस का ग्राफ तेजी से बढ़ा है.

संघ के आधिकारिक रिपोर्ट के मुताबिक .

2013 में देश के 28788 स्थानों पर 42981 शाखाएं चलाई जा रही थी, जबकि 9597 साप्ताहिक बैठकें होती थी. उस वक्त संघ के पास सिर्फ 7178 संघ मंडली था.

2013 के मुकाबले 2023 में इस संख्या में काफी बढ़ोतरी देखी गई. 2023 में देश के 42,613 स्थानों पर संघ की 68,651 दैनिक शाखाएं चल रही हैं.

इसके अलावा 26,877 साप्ताहिक बैठकें होती हैं, जबकि 10,412 संघ मंडली हैं.

अटल बिहारी के शासन में संघ का विस्तार काफी कम हुआ था.

1998 में अटल सरकार आने के वक्त संघ की सिर्फ 30 हजार शाखाएं चलती थी, जो 2004 में बढ़कर 39 हजार पर पहुंचा था.

1998 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार बनी, जिसके बाद थोड़ा बहुत संघ का भी विस्तार हुआ. 2004 के आसपास संघ के करीब 39 हजार शाखाएं चलती थी.

संघ गुजरात, महाराष्ट्र, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, बंगाल जैसे राज्यों में पहले की तुलना में काफी मजबूत हुआ है.

वर्तमान में संघ का क्रेज युवाओं में लगातार बढ़ रहा है.

संघ के दावे के मुताबिक 2017 से लेकर 2022 तक 7 लाख से अधिक लोगों ने संघ में शामिल होने की इच्छा जताई.

संघ के इतिहास में यह आंकड़ा एक रिकॉर्ड है.

संगठन के अनुसार ऑनलाइन आवेदन जितने भी आए हैं, इनमें से अधिकांश 20 से 35 आयु वर्ग के युवक हैं.

आरएसएस की मानें तो संघ में 60 प्रतिशत शाखाएं विद्यार्थी शाखाएं हैं.

बीते एक साल में 121137 युवाओं ने संघ का प्रशिक्षण प्राप्त किया है.

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