Amrita Pritam’s Imroz:अमृता और इमरोज की अद्भुत प्रेम कहानी का आज समापन हो गया, जब इस कहानी के एक बड़े किरदार इमरोज़ का मुंबई के कांदिवली स्थित उनके आवास पर निधन हो गया. वह 97 वर्ष के थे.
इमरोज जरा रोग संबंधी समस्याओं से पीड़ित थे. इमरोज एक शानदार प्रेमी होने के साथ-साथ कवि और मशहूर चित्रकार भी थे.
उनके निधन पर साहित्य जगत ने शोक व्यक्त किया है. इमरोज का असली नाम इंद्रजीत सिंह था.
Amrita Pritam’s Imroz:वे मशहूर लेखिका और कवयित्री अमृता प्रीतम के साथ रहने के चलते चर्चा में आए थे. अमृता और इमरोज का साथ लगभग 40 साल का था.
अमृता प्रीतम के अंतिम दिनों में इमरोज ही उनके साथ थे. अमृता उन्हें जीत कहा करती थीं.
इमरोज ने अमृता प्रीतम के लिए कविताओं की एक पुस्तक भी लिखी थी- ‘अमृता के लिए नज्म जारी है’.
इस पुस्तक का प्रकाशन हिंद पॉकेट बुक्स ने वर्ष 2008 में किया था. इसमें वे अमृता के लिए लिखते हैं-
कभी-कभी
खूबसूरत खयाल
खूबसूरत बदन भी
अख़्तियार कर लेते हैं।
अमृता प्रीतम और इमरोज के प्रेम ने इस दुनिया को कई प्रेम कहानियां दीं. प्यार की नई परिषाभाएं गढ़ीं.
मोहब्बत की इम्तिहा को इसी बात से समझा जा सकता है कि अमृता प्रीतम की मृत्यु के बाद भी इमरोज यह मानते ही नहीं थे कि वे अब इस दुनिया में नहीं हैं.
इमरोज अमृता के बारे में कहा करते थे- ‘वो यही है, घर पर ही है, कहीं नहीं गई’.
इमरोज ने अमृता प्रीतम को लेकर एक कविता और लिखी है ‘संपूर्ण औरत’-
चलते-चलते एक दिन
पूछा था अमृता ने-
तुमने कभी वुमैन विद माइंड
पेंट की है?
चलते-चलते मैं रुक गया
अपने भीतर देखा, अपने बाहर देखा
जवाब कहीं नहीं था
चारों ओर देखा-
हर दिशा की ओर देखा और किया इंतजार
पर न कोई आवाज आई, न कहीं से प्रति-उत्तर
जवाब तलाशते-तलाशते
चल पड़ा और पहुंच गया-
पेंटिंग के क्लासिक काल में
अमृता के सवाल वाली औरत
औरत के अंदर की सोच
सोच के रंग
न किसी पेंटिंग के रंगों में दिखे
न ही किसी आर्ट ग्रंथ में मुझे नजर आए
उस औरत का, उसकी सोच का जिक्र तलाशा
हाँ,
हैरानी हुई देख-देखकर
किसी चित्रकार ने औरत को जिस्म से अधिक
न सोचा लगता था, न पेंट किया था
संपूर्ण औरत जिस्म से कहीं बढ़कर होती है
हसोया जा सकता है और जिस्म के साथ
पर सिर्फ जिस्म के साथ जागा नहीं जा सकता
अगर कभी चित्रकारों ने पूर्ण औरत के साथ जागकर
देख लिया होता
और की और हो गई होती चित्रकला-अब तलक
मॉडर्न आर्ट में तो कुछ भी साबुत नहीं रहा-
न औरत, न मर्द और न ही कोई सोच…
गर कभी मर्द ने भी औरत के साथ जागकर देख लिया
होता,
बदल गई होती ज़िंदगी हो गई होती जीने योग्य ज़िंदगी
उसकी और उसकी पीढ़ी की भी…
इमरोज के अंतिम दिनों में उनके साथ रहे मित्रों ने बताया कि इमरोज की सेहत पिछले कुछ समय से खराब चल रही थी और उन्होंने हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया.
उन्हें पाइप के माध्यम से भोजन दिया जा रहा है.
इतनी गंभीर हालत होने के बाद भी इमरोज एक दिन भी अमृता को नहीं भूले.
इमरोज इस बात से बहुत नाराज होते जब कोई अमृता के बारे में ‘थी’ आदि लगाकार बात करता था.
वे कहते कि अमृता है और यहीं है.
इमरोज का जन्म 26 जनवरी, 1926 में अविभाजित पंजाब में हुआ था.
बताते हैं कि अमृता को अपने कविता संग्रह ‘नगमानी’ के कवर डिजाइन के लिए एक कलाकार की तलाश थी.
इस तलाश में उनकी मुलाकात इंद्रजीत से हुई.
इस दौरान दोनों की मुलाकातें होने लगीं और अमृता ने ही इंद्रजीत को इमरोज नाम दिया था.
ये मुलाकातें लंबी होती गईं और इमरोज अमृता से प्रेम करने लगे.
लेकिन अमृता मशहूर शायर साहिर लुधियानवी से मोहब्बत करती थीं.