Importance of Parikrama: देवी-देवताओं और मंदिरों की परिक्रमा पूजा का अभिन्न अंग है.हिंदू धर्म में पूजा के नियमों में देवी-देवताओं और मंदिरों की परिक्रमा भी शामिल होती है.
बता दें कि परिक्रमा मूर्तियों, मंदिरों, पेड़-पौधों, नदियों, पहाड़ों, व्यक्तियों और अन्य वस्तुओं के आसपास की जाती है.
हिंदू धर्म में मंदिर में पूजा करने के बाद पूरे मंदिर या एक विशेष मूर्ति की खास तौर पर परिक्रमा की जाती है.
Importance of Parikrama:मंदिरों की चारों ओर घूम कर की गई परिक्रमा हो या पूजा के दौरान एक ही जगह पर घूमकर की गई परिक्रमा हो.
आप भी मंदिर में दर्शन करने जाते होंगे तो परिक्रमा जरूर करते होंगे.
पर क्या आपको पता है की परिक्रमा क्यों की जाती है और परिक्रमा करने के नियम क्या हैं.
आइए जानते हैं परिक्रमा के क्या है नियम और इनसे क्या लाभ होता है.
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान गणेश और कार्तिकेय ने सबसे पहले परिक्रमा लगाई थी.
देवों में सबसे पहले पूजन के लिए निश्चित किया गया था कि जो देव सबसे पहले सृष्टि का चक्कर लगाएंगे उनकी प्रथम पूजा होगी.
इसमें भगवान गणेश भगवान शंकर और माता पार्वती के दिन चक्कर लगाकर प्रथम पूज्य देव बन गए.
इसी के आधार पर पुण्य की प्राप्ति के लिए देवी देवताओं और उनके घर मंदिरों की परिक्रमा की शुरुआत मानी जाती है.
सनातन धर्म में परिक्रमा को बहुत शुभ माना जाता है.
मंदिर में परिक्रमा हमेशा घड़ी की सुई की दिशा में लगाई जाती है,
जिसे मंत्रों के उच्चारण के साथ लगभग 3 बार पूरा किया जाता है.
जब कोई ऐसा करता है तो उसका दाहिना भाग गर्भगृह के अंदर देवता की ओर होता है
और परिक्रमा वेद द्वारा अनुशंसित दक्षिणाचारम या शुभ होती है.
मान्यता है कि देचर देवताओं और मंदिरों की परिक्रमा करने से सकारत्मक ऊर्जा प्राप्त होती है.
इससे उसके चारों तरफ फैली नकारात्मकता का नाश हो जाता है.
देवी देवताओं या मंदिर की परिक्रमा करना उनके प्रभुत्व के आगे सिर झुकाने की तरह होता है.
शास्त्रों के अनुसार परिक्रमा हमेशा देवी देवता के दाएं हाथ से बाएं हाथ की तरफ लगाना शुभ माना जाता है.
परिरकमा की गिनती हमेशा विषम संख्या में होनी चाहिए.
जैसे 11 या 21 बार परिक्रमा करना शुभ माना जाता है.
परिक्रमा करते समय बातें नहीं करनी चाहिए इस समय चलते हुए भगवान को स्मरण करना सर्वोत्तम माना जाता है.
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी परिक्रमा लगाना फायदेमंद माना जाता है.
जिस जगह पर प्रतिदिन पूजा होती है, वहां सकारात्मक ऊर्जा बढ़ जाती है.
इस ऊर्जा से आत्मबल मजबूत होता है और उसको मानसिक शांति मिलती है.