नई दिल्ली:Rajiv Gandhi assassination case: पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एक अहम फैसला लेते हुए सजा काट रहे दोषी एजी पेरारीवलन को रिहा करने का आदेश दिया है.
सुप्रीम कोर्ट ने रिहाई के लिए अनुच्छेद 142 के तहत विशेषाधिकार के तहत फैसला दिया है.
Rajiv Gandhi assassination case में दया याचिका राज्यपाल और राष्ट्रपति के बीच लंबित रहने पर शीर्ष अदालत ने बड़ा कदम उठाया है.
सुप्रीम कोर्ट ने पेरारीवल की रिहाई की याचिका मंजूर कर ली.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य कैबिनेट का फैसला राज्यपाल पर बाध्यकारी है
.सभी दोषियों की रिहाई का रास्ता खुला हुआ है.
बता दें कि पेरारीवलन फिलहाल जमानत पर रिहा है.
उसने रिहाई के लिए याचिका डालकर कहा था कि वो 31 साल से जेल में बंद है,
उसे रिहा किया जाना चाहिए.
2008 में तमिलनाडु कैबिनेट ने उसे रिहा करने का फैसला किया था,
लेकिन राज्यपाल ने मामले को राष्ट्रपति के पास भेज दिया था, तभी से उसकी रिहाई का मामला लंबित था.
सुप्रीम कोर्ट ने 10 मई को मामले की सुनवाई कर फैसला सुरक्षित रखा था.
सुनवाई में शीर्ष अदालत ने क्या कहा था?
इस मामले में सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार सवाल उठाए थे.
कोर्ट ने कहा था कि कानूनी और संवैधानिक सवाल यही है कि क्या राज्यपाल कैबिनेट की सम्मति के खिलाफ जा सकते हैं? ये गंभीर मसला है.
इससे संघीय ढांचे पर प्रतिगामी प्रभाव हो सकता है.
इससे संघीय व्यवस्था नष्ट हो सकती है.
कानून से ऊपर कोई नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि “सरकार हमारे आदेश का पालन करे वरना कोर्ट आदेश पारित करेगा
क्योंकि सरकार कानून पालन ना करे तो कोर्ट आंखें बंद कर बैठा नहीं रह सकता.
हमारी निगाह में कानून से ऊपर कोई नहीं है.”
Rajiv Gandhi assassination case में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से यह भी पूछा था कि क्या राज्य के राज्यपाल के पास राज्य मंत्रिमंडल द्वारा भेजी गई सिफारिश को बिना फैसला लिए राष्ट्रपति को भेजने की शक्ति है?
एजी पेरारीवलन पूर्व PM राजीव गांधी की हत्या का दोषी है और उम्रकैद की सजा काट रहा है.
पेरारिवलन के वकील ने दलील दी थी कि उसने 36 साल जेल में काट लिए हैं,
उसका आचरण सही है और उसे जेल से रिहा किया जाना चाहिए.
सितंबर, 2018 में तत्कालीन AIADMK कैबिनेट ने एक प्रस्ताव पारित किया था
और पेरारिवलन सहित उम्रकैद की सजायाफ्ता सभी सात दोषियों की समयपूर्व रिहाई का आदेश देने के लिए तत्कालीन राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित को अपनी सिफारिश भेजी थी,
लेकिन राज्यपाल के फैसला ना करने पर पेरारिवलन ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था.