SP-RLD Alliance : उत्तर प्रदेश में गुरुवार यानी कि 26 मई को दो अहम घटनाएं हुई.
पहली घटना यूपी के इतिहास का सबसे बड़ा छह लाख 15 हजार 518 करोड़ का बजट सदन में पेश किया गया.
जबकि दूसरी घटना टूटने की कगार पर पहुंच चुके समाजवादी पार्टी और
Rashtriya Lok Dal के गठबंधन के बच जाने की रही.
SP के मुखिया अखिलेश यादव ने RLD प्रमुख जयंत चौधरी को राज्यसभा के लिए संयुक्त प्रत्याशी घोषित कर गठबंधन को टूटने से बचा लिया.
मुलायम सिंह की सलाह पर अखिलेश ने भविष्य की संभावनाओं को मजबूती देने के लिए यह फैसला लिया है.
SP नेताओं के अनुसार पार्टी के मुखिया ने जयंत चौधरी को राज्यसभा भेजने का फैसला कर यह संदेश देने की भी कोशिश की है
कि SP और RLD के गठबंधन में आपसी प्यार और सम्मान बना रहेगा और आपसी वादे पूरे करने की कोशिश की जाएगी.
किसे राज्यसभा भेजना चाहते थे अखिलेश ?
समाजवादी पार्टी के नेताओं का यह दावा फेस सेविंग के अलावा और कुछ नहीं है.
हकीकत यह है कि अखिलेश यादव ने RLD मुखिया जयंत चौधरी को राज्यसभा ना भेजने का मूड बना लिया था.
अखिलेश ने पार्टी के सीनियर नेता आजम खान को खुश करने के लिए कपिल सिब्बल को और
अपने चाचा प्रोफेसर रामगोपाल के बेहद नजदीकी जावेद अली और
अपनी पत्नी डिंपल यादव को राज्यसभा भेजने का मन बनाया था.
उनके इस फैसले के तहत ही बुधवार को SP की तरफ से कपिल सिब्बल और
जावेद अली ने नामांकन कर दिया.
और तीसरी सीट के लिए डिंपल यादव के जल्द ही नामांकन करने की चर्चा तेज हो गई.
इस पूरी कहानी में बुधवार की शाम तब मोड़ आ गया जब लखनऊ में RLD के विधायकों ने अखिलेश यादव से मुलाकात की.
अखिलेश से क्या बोले RLD के विधायक ?
RLD के मुखिया जयंत चौधरी को राज्यसभा ना भेजने से नाराज इन विधायकों ने अखिलेश से कहा
कि भले ही जयंत चौधरी को राज्यसभा भेजने के बाबत वादे हुए हो या न हुए हों पर गठबंधन का सरोकार
और वक्त का तकाजा यही कहता है कि जयंत को राज्यसभा भेजा जाए.
चूंकि यह बात तो तय है कि भले ही SP और
RLD गठबंधन अपेक्षित प्रदर्शन न कर पाया हो पर दोनों ने मिलकर मजबूती से चुनाव लड़ा
और तमाम ऑफर के बावजूद जयंत गठबंधन के साथ मजबूती से खड़े रहे.
चुनाव में पूरी ताकत लगाई. ऐसे में अब गठबंधन धर्म निभाने का फर्ज आया तो उसे निभाया जाना चाहिए.
विधायकों की इस मुलाकात का असर यह रहा कि
अखिलेश यादव ने गुरुवार को यह घोषणा कर दी कि उनके उम्मीदवार जयंत होंगे.
अखिलेश यादव के इस फैसले के पीछे समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव की भूमिका है.
पार्टी नेताओं के अनुसार मुलायम सिंह ने पर्दे के पीछे रहकर अखिलेश यादव को जयंत को हर हाल में अपने साथ रखने की सलाह दी जिसे अखिलेश यादव ने माना.
SP-RLD Alliance : जयंत को राज्यसभा नहीं भेजने से होते क्या नुकसान ?
अब अखिलेश यादव के RLD प्रमुख को जयंत चौधरी को राज्यसभा भेजने के फैसले को दूरगामी सोच भरा बताया जा रहा.
चूंकि BJP ने चुनाव में जयंत के लिए अपने दरवाजे स्पष्ट रूप से खोल रखे थे
और तमाम सियासी गुणा भाग लगाए गए थे.
बावजूद इसके जयंत समाजवादी पार्टी के साथ रहे.
ऐसे में अगर अखिलेश यादव जयंत की जगह डिंपल यादव को राज्यसभा भेजते तो वह जयंत का साथ खो बैठते.
RLD के विधायकों ने भी ऐसा ही संकेत अखिलेश यादव से मुलाकात करते हुए उन्हें दिया था.
इस मुलाक़ात के बाद अखिलेश यह बात भली भांति जान गए कि यदि
अब RLD की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा गया तो साल 2024 के लोकसभा चुनाव के पहले ही गठबंधन खतरे में पड़ जाएगा.
यदि SP-RLD साथ रहे तो लोकसभा चुनाव में लाभ हो सकता है पर यदि नाराजगी हो गई
और जयंत चले गए तो निश्चित रूप से पश्चिमी उप्र में समाजवादी पार्टी की राह मुश्किल हो सकती है.
इस गुणा गणित और मुलायम सिंह की सलाह पर अखिलेश यादव ने जयंत चौधरी को राज्यसभा भेजने का ऐलान कर गठबंधन को बचा लिया है.