समाजवादी दिग्गज Karpoori Thakur को भारत रत्न

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Karpoori Thakur : नई दिल्‍ली: दिग्गज समाजवादी नेता कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने का एलान किया गया है.

Karpoori Thakur:बुधवार को ही कर्पूरी ठाकुर का जन्मदिन है और उनकी जन्मशती है.कर्पूरी ठाकुर उन नेताओं में रहे जिन्होंने भारत की आज़ादी की लड़ाई में हिस्सा लिया.

बिहार में समाजवादी-पिछड़ा नेतृत्व के उभार में उनकी अहम भूमिका रही.

सत्तर के दशक में वो बिहार के उपमुख्यमंत्री भी बने.

1977 में जयप्रकाश नारायण की संपूर्ण क्रांति के बाद बिहार में भी सत्ता बदली

और वो जनता पार्टी सरकार के मुख्यमंत्री बनाए गए.

उन्होंने सामाजिक-आर्थिक और भाषिक बराबरी से जुड़ी लड़ाइयों के कई मोर्चे खोले.

वे उन नेताओं में रहे जिनकी प्रशासनिक क्षमता का लोहा सब मानते थे.

कर्पूरी ठाकुर की ईमानदारी पर भी कभी सवाल नहीं उठे.

लोहिया और जयप्रकाश की वैचारिक विरासत को उन्होंने आगे बढ़ाया था.

लालू यादव और नीतीश कुमार ने भी उन्हीं की राह पर चलते हुए बिहार में अपनी सियासत की है.

सामाजिक न्याय के हिमायती कर्पूरी ठाकुर ने अनुसूचित जाति, जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के अलावा,

आज से चार दशक पहले ही सवर्ण गरीबों और हरेक वर्ग की महिलाओं को तीन-तीन फीसदी आरक्षण का प्रावधान किया था.

Karpoori Thakur:कर्पूरी ठाकुर के मुख्यमंत्री रहते हुए ही बिहार अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए आरक्षण लागू करने वाला देश का पहला सूबा बना था.

उन्होंने नौकरियों में तब कुल 26% कोटा लागू किया था.

कर्पूरी ठाकुर का जन्‍म बिहार के समस्तीपुर जिले के पितौझिया गांव में 1924 में हुआ था.

कर्पूरी ठाकुर दो बार बिहार के मुख्यमंत्री रहे. दिसंबर 1970 से जून 1971 तक और दिसंबर 1977 से अप्रैल 1979 तक.

दलित और पिछड़ों के लिए कर्पूरी ठाकुर ने जीवन भर काम किया.

नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव जैसे नेताओं ने उन्‍हीं की राह पर चलते हुए अपनी राजनीति चमकाई.

मुख्यमंत्री के रूप में अपने संक्षिप्त कार्यकाल के दौरान कर्पूरी ठाकुर ने बिहार में शराब पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया था.

हालांकि दलितों ने इसका विरोध किया, जिनका रोजगार ताड़ी के व्यापार पर निर्भर था.

वह जननायक के रूप में जाने जाते थे. उन्‍होंने अपना पूरा जीवन बिहार में सामाजिक रूप से पिछड़े समुदायों के लिए समर्पित कर दिया.

कर्पूरी ठाकुर एक गरीब परिवार से संबंध रखते थे और बेहद ईमानदार और सादा जीवन जीने के लिए जाने जाते थे.

कर्पूरी ठाकुर स्‍वतंत्रता सेनानी के साथ एक शिक्षक और सफल राजनेता भी थे.

1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भी वो शामिल रहे.

1977 में लोकसभा का चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे थे, तब उन्होंने अपने संबोधन में कहा था, ‘संसद के विशेषाधिकार कायम रहें लेकिन जनता के अधिकार भी.

यदि जनता के अधिकार कुचले जायेंगे तो एक न एक दिन जनता संसद के विशेषाधिकारों को चुनौती देगी.’

मुख्यमंत्री रहते उन्होंने बिहार में शिक्षा व्यवस्था को सुधारने के लिए कई उपाय किए.

उन्होंने देशी और मातृभाषा को बढ़ावा देने के लिए तब की शिक्षा नीति में बदलाव किया था.

वो भाषा को रोजी-रोटी से जोड़कर देखते थे.

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