प्रेम सिंह
Ram Lalla:रामलला की उंगली उन्हें थमा देंगे.विश्वास नहीं था भाई लोग ऐसा रंग जमा देंगे.
रकम पानी की तरह बहा देंगे. पग-पग पर मोदी की छाप लगा देंगे.
कल्पना ही की जा सकती है जब लल्ला (जायो जशोदा ने लल्ला मोहल्ला में हल्ला सो मच गयो री) की प्राण-प्रतिष्ठा होगी, तो कैसा रंग जमेगा!
‘मर्यादा पुरुषोत्तम’ के मुकाबले ‘लीला-पुरुष’ का प्राण-प्रतिष्ठा महोत्सव ज्यादा करतबी और रंगारंग होगा ही.
बारी आ ही चुकी है.
आशा की जानी चाहिए कि ‘जन्म-स्थान’ मुक्ति के महान कार्य में ‘जन्म-भूमि’ जितना समय नहीं लगेगा.
फिर भी थोड़ी जल्दी तो करनी पड़ेगी.
अगर जन्म-स्थान पर कृष्ण-मंदिर का निर्माण भी भव्य करना है, तो उसके लिए सभी साजो-सामान झटपट जुटाने होंगे. चलो अयोध्या.
Ram Lalla:दुनिया की तीसरी अर्थ-व्यवस्था में धन की चिंता नहीं होनी चाहि. बल्कि मंदिर बनने में इतना विलंब इसीलिए हुआ लगता है कि भारत 2014 से पहले धन-दौलत के मामले में एक फिसड्डी देश था.
ऐसा बताया जाता है कि 2014 के बाद भारत का दुनिया में नाम और दबदबा भी खूब बढ़ गया है.
वह जल्दी ही दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी आर्थिक ताकत बन जाएगा.
तब अच्छे दिन और अच्छी तरह से आ जाएंगे.
हो सकता है भव्य कृष्ण-मंदिर के निर्माण का सारा बोझ एनआरआई ही उठा लें.
वे अच्छी तरह से जाग गए हैं. चलो अयोध्या..
इच्छा के साथ अब अनुभव भी है, वह जल्दी काम सम्पन्न करने में काम आएगा.
आधे-अधूरे मंदिर में प्राण-प्रतिष्ठा का शास्त्र-विरुद्ध (‘परहित घृत में माखी’ के समान कुछ धर्माचार्य ऐसा कहते पाए जाते हैं) कार्य करने की नौबत भी नहीं आएगी.
न्यायपालिका का ज्यादा झंझट नहीं रहने वाला है.
उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायधीश खुद द्वारिकाधीश मंदिर में भगवा धारण करके भगवा-ध्वज की प्रेरणा से भर चुके हैं.
उन्होंने ऐलान कर दिया है कि भगवा देश की एकता का सूचक है.
देश में संविधान सहित सब कुछ भगवा-प्रेरित है. कृष्ण तो वैसे भी पीताम्बर पहनते थे.
Ram Lalla:पीले और भगवा में ज्यादा फर्क नहीं होता. चलो अयोध्या.तो क्या ‘जन्म-स्थान’ में भी प्राण-प्रतिष्ठा यही वाले मोदी करेंगे?
या नए वाला मोदी वह ‘राष्ट्रवादी कर्तव्य’ सम्पन्न करेगा?
पिछले दस साल से यही सुनते आ रहे हैं – ‘मोदी है तो सब कुछ मुमकिन है’.
आशा बंधती है कि आगे आने वाले अच्छे दिन भी इन्हीं मोदी के रहते आ जाएंगे.
सोनिया के सेकुलर सिपाहियों, जो पिछले 15 सालों से केजरीवाल नाम की ब्रिगेड के सेकुलर सिपाही भी हैं
यानि डबल ड्यूटी पर हैं, के लिए वह अच्छा ही होगा.उन्हें उलझन का सामना नहीं करना पड़ेगा.चलो अयोध्या.
‘रामलला प्राण-प्रतिष्ठा महोत्सव’ की तरह लल्ला की प्राण-प्रतिष्ठा की तिथि की समस्या भी नहीं होनी चाहिए.
यूं तो वह 15 अगस्त या 26 जनवरी भी हो सकती है. लेकिन शायद अभी ऐसा करना जल्दबाजी होगी.
पहले 15 अगस्त और 26 जनवरी का मजबूती से राष्ट्रवादीकरण हो जाए,
उसके बाद धर्म का मुकम्मल इलाज यानि राष्ट्रवादीकरण करना ठीक होगा.
एक भारत, मजबूत भारत में धर्म एक ही रहना चाहिए. क्या कहा, मंदिर के बाद नई मस्जिद भी बनेगी?
अरे भाई, नई मस्जिद सरकारी मुसलमानों की होगी.
असली मुसलमानों को नई मस्जिद नहीं चाहिए। भला क्यों, असली मुसलमानों को नए भारत में नहीं रहना है?
नहीं भाई, उन्हें पुराने भारत में रहने की आदत डाली गई है। असली और पुराने हैं तो यहां क्या कर रहे हैं? चलो अयोध्या।
क्या कहा, लल्ला की प्राण-प्रतिष्ठा की तिथि भी चुनाव से ही तय होगी? क्यों भला! बहुत आसान है, लोकतंत्र का धर्म चुनाव है; चुनाव की जीत धर्म की जीत हुई.
तो क्या रामनवमी की तरह जन्माष्टमी भी! अरे भाई, इतना भी नहीं समझते नए भारत में पुराने भारत वाली रामनवमी और जन्माष्टमी नहीं चलेंगी.
उसी तरह जैसे नए भारत में तीर्थ-स्थल नहीं, कॉरिडोर चलते हैं.
नया भारत विकसित भारत है, उसमें सब कुछ का राष्ट्रवादीकरण और सौंदर्यीकरण करना जरूरी है.
छोटे-छोटे मंदिर, संकरे गली-मुहल्ले, सड़ी दुकानें – यह बहुत हो चुका.बड़ा सोचो, बड़ा बनाओ.तभी बड़े बनोगे.
देखते नहीं अयोध्या और देश भर में कितने बड़े-बड़े कटाउट, होर्डिंग, बैनर, झंडे और स्क्रीन लगाए गए हैं.
तीर्थ-यात्रा में राष्ट्र-भक्ति और सैर-सपाटे का मिला-जुला मजा लो.
क्या कहा, धार्मिक आस्था? नए भारत में धार्मिक आस्था भी नई होनी चाहिए.
लेकिन पुराने जमाने में आस्था में भी सादगी और विवेक होता था?
अरे भाई, सादगी और विवेक किस चिड़िया का नाम हुआ? नई आस्था असली आस्था होती है.
पुरानी मिलावट करने वालों से सावधान! चलो अयोध्या.
बहरहाल, मथुरा नगरी की बात छोड़ते हैं.
अयोध्या नगरी की तरफ बढ़ते हैं जहां चलने की चौतरफा टेर लगी है.
कैसी धज है! तीन लोक से न्यारी! आगे-आगे नेताजी पीछे-पीछे बाबाजी.
उनके पीछे डिगनिट्रीज़ और सेलेब्रेटीज की डार.
काफी दिनों से न्यौते बंट रहे हैं. किसे मिला किसे नहीं मिला की चर्चाएं और चिंताएं चारों तरफ घट रही हैं.
कुछ नेताजी और बाबाजी मोदीजी की पुरोहिताई में अयोध्या नहीं जाना चाहते.
उनकी घोषणा है, वे बाद में अयोध्या जाएंगे.कुछ कह रहे हैं, वे सीधे श्रीराम के बुलावे पर अयोध्या जाएंगे.
उन्हें अनुयायियों सहित श्रीराम के बुलावे का पक्का विश्वास है. श्रीराम केवल संघियों के नहीं हैं.
भक्ति हो तो ऐसी! जैसे बच्चा-बच्चा श्रीराम का और जन्म-भूमि के काम का था, उसी तरह नेता-नेता और बाबा-बाबा श्रीराम की प्राण-प्रतिष्ठा के काम का है.
जो जितना बड़ा नेता, जितना बड़ा बाबा उतना बड़ा भक्त.
जो नेता अभी या कभी अयोध्या नहीं जाना चाहते, वे इस अवसर पर अपने राज में अपने धार्मिक महोत्सव कर रहे हैं.
सनातन धर्म के नाश पर तुले नेता भी कह रहे हैं, उन्हें राम-मंदिर से एतराज नहीं है.
नए भारत में सुर एक-दूसरे से इसी तरह मिलता है. चलो अयोध्या.
आप ये ना समझें कि देश में नेताजी और बाबाजी ही भक्त होते हैं.
‘ऋषियों-मुनियों की भूमि’ भारत भक्तों से भरी हुई है.
नए भारत में वे नए सिरे से जाग उठे हैं.
डिगनिट्रीज़ और सेलेब्रेटीज का जिक्र ऊपर हुआ.
बड़े-बड़े नौकरशाह, सैन्य अधिकारी, प्रोफेसनल्स, बड़े-बड़े होटलों के मालिक, मंदिरों के पुजारी, व्यवसायियों की संस्थाओं के अध्यक्ष,
शैक्षिक संस्थाओं के मुखिया, छात्र-नेता, शिक्षक-नेता, पत्रकार, लेखक, कलाकार, खिलाड़ी और न जाने कौन-कौन राम-भक्ति से भावित हो उठे हैं.
एनआरआई बंधुगण अमेरिका-इंग्लैंड जैसे देशों में शानदार तरीकों से प्राण-प्रतिष्ठा महोत्सव मनाने की तैयारियों में जुटे हैं. चलो अयोध्या.
प्राण-प्रतिष्ठा महोत्सव में खलकत का भी ध्यान रखा गया है.
खलकत में ज्यादातर गरीब हैं तो क्या?
पाई-पाई से उन्हीं की तो भलाई की जा रही है.
राम-मंदिर का पुण्य-प्रताप उनके भी काम आएगा.
प्राण-प्रतिष्ठा होते ही नए भारत के अमीर कह देंगे हमें अपने खाते में 15 लाख नहीं चाहिए.
हमारा हिस्सा गरीबों के खाते में डाल दो.
जो भक्त जहां हैं वहीं उसकी भक्ति-भावना तुष्ट हो, इसका पूरा इंतजाम है.
इसके लिए सरकार और राम-भक्त जोर-शोर से उद्यम में लगे हैं.
पूरे देश में मंदिरों से लेकर रेल्वे स्टेशनों तक सीधे प्रसारण के स्क्रीन लगाए गए हैं.
महानगरों, नगरों की नागरिक बस्तियों में उत्साही भक्त सजावट कर रहे हैं.
ध्वज, शोभा-यात्रा, पूजा, हवन-कीर्तन, सुंदर-कांड, भंडारा सब होगा.
चैनलों, अखबारों और सोशल मीडिया में तो महीने-भर से अयोध्या की धूम मची है.
नई दिवाली आई है.
बच्चों से लेकर बड़ों तक छुट्टी का माहौल है.चलो अयोध्या.
दिल्ली में डबल इंजन यानि केंद्र और राज्य दोनों में राम-भक्तों की सरकार है.
यहां ज्यादा रंग जम रहा है.
आईटीसी मौर्या, ताज, ललित, इम्पीरीयल, एम्बेसडर, क्लेरिजिज, अशोका, ओबेरॉय, आदि होटल, मशहूर क्लब, बाजार, मॉल, पार्क, विश्वविद्यालयों के कैंपस सब फ्लैग, बैनर, पोस्टर, लाइट आदि से सजाए जा रहे हैं.
कनॉट प्लेस में सवा लाख दिए जलाए जाएंगे.
एक स्टोर के अंदर जैश्रीराम कह कर जाने वालों को खरीद पर 20 प्रतिशत की छूट की घोषणा है.
क्या कहा, राम-राम कहने पर! अरे भाई आपका ‘संशय विहग’ उड़ा नहीं अभी.
आप जैसों की यही दिक्कत है.इस बारे में हम कुछ नहीं बता सकते.
जिसे एडवेंचर करना हो, अपने रिस्क पर करे.
और दिल्ली में सुंदर कांड के अलावा रामलीला होगी.
चलो अयोध्या.
ऐसे उत्साही माहौल में हमें आशा थी कि जिस तरह पिछले पूर्ण-कुम्भ के अवसर पर यूरोप के देशों से विदेशी ‘भारत-भक्तों’ को सरकारी खर्चे पर कुम्भ-स्नान के लिए लाया गया था,
उन्हें भारतीय संस्कृति का पाठ पढ़ाया गया था, इस अवसर पर भी लाया जाएगा.
जिस तरह उन्हें विशेष हवाई जहाजों द्वारा होटलों से प्रयागराज पहुंचाया गया था,
उसी तरह अयोध्या पहुंचाया जाएगा. अयोध्या में हवाई अड्डा बन ही गया है.
लेकिन अभी तक ऐसी कोई सूचना आई नहीं है.इससे थोड़ी निराशा जरूर हुई है.
आशा है, विदेशों में सभी दूतावासों में उचित इंतजाम करके ‘भारत-भक्तों’ को डिजिटल अयोध्या-दर्शन कराया जाएगा. चलो अयोध्या.
कुदरत अपना खजाना सब पर लुटाती है.
मनुष्यता की सभी खूबियां सभी को बांटती है.
कोई भी ताला उन्हें बंद नहीं कर सकता। सुनते आए हैं राम कुदरत में रमे हुए हैं – रम्यते इति राम:.
क्या कोई ऐसा संघी या उनका नया, जागा हुआ साथी होगा जो इस रंगारंग कार्निवल को किंचित कौतुक भाव से देखता होगा?
थोड़ा मुस्कुराता होगा? होगी? भले ही बोल कुछ न पाए – गूंगे के गुड़ की तरह! ऐसी कोई विभूति मिले, तो हमें जरूर बताना। उनका दर्शन करके जीवन को धन्य करना है.
ऐसा कोई लेफ्ट-लिबरल भी टकरा जाए तो बताइएगा. चलो अयोध्या.
आप पूछते हैं, हम खुद अयोध्या कब जाएंगे? युग का यह सबसे बड़ा सवाल है – कौन कब अयोध्या जाएगा?
हाल में दिसंबर के अंतिम सप्ताह में सपत्नीक इलाहाबाद जाना हुआ.
सुरेंद्र मोहन जी की स्मृति में कार्यक्रम था.
पत्नी आजकल भक्ति की संस्कृति में संपृक्त हैं.
उन्होंने पहले ही घोषणा कर दी थी कि इलाहाबाद से अयोध्या नगरी जाएंगी.
मीडिया की खबरों से उन्हें लगा था कि भव्य-मंदिर बन चुका है,
और अयोध्या एक नई गंधर्व नगरी में परिवर्तित हो चुकी है. लौटी तो निराश थीं.
बताया निर्माणाधीन मंदिर में अंदर भी नहीं गईं. कहती हैं अब जब मूड बनेगा तो जाएंगी.
मुसीबत यही है कि बिना पत्नी के धर्म-कर्म क्या कोई भी कारज कैसे सिद्ध हो!
अयोध्या जाने वाले भक्त लोग हमारे जैसों के लिए भी कोई रास्ता जरूर निकालेंगे। चलो अयोध्या.