मार्डन लाइफ स्टाइल ने बदली युवाओं की जीवन शैली
मार्डन लाइफ स्टाइल आज के युवाओं को अस्वस्थ बना रही.
इस समय की शहरी कार्यशैली के कारण उनकों लगातार पीठदर्द, मोटापा, तनाव, अवसाद आदि बीमारियां की शिकायत हो रही है.
मार्डन लाइफ स्टाइल के कारण लगातार ऐसे युवाओं की तादाद बढ़ रही है.
जो इस तरह की बीमारियों से ग्रसित हो रहे हैं. इसके पीछे अगर कुछ है.
तो वह है काम करने, रहने और खाने-पीने का तरीका.
मार्डन लाइफ स्टाइल ने हमारी जीवन शैली को बदलकर रख दिया है.
उसका सीधा असर स्वास्थ्य पर पड़ रहा है.
बहुराष्ट्रीय कंपनियों और कार्यशैली के आधुनिकीकरण ने दिन और रात के भेद को खत्म कर दिया है.
मार्डन लाइफ स्टाइल से बढ़ रहा मोटापा
काल सेंटर और इंटरनेट के बाद सोशल मीडिया ने भी लाइफ स्टाइल को बदलकर रख दिया है.
अब देर रात जागना, सुबह देर से उठना और इसके बाद काम पर चले जाना ही जीवन हो गया.
ऐसे में खान-पान का प्रभावित होना लाजिमी है.
आज का युवा ज्यादातर फास्टफूड, डिब्बाबंद या फिर होटल के खानों पर आश्रित हो गया है.
आजकल हर चौराहे पर चाइनीज, तले फूड स्टालों के आगे युवाओं की भीड़ लगी रहती है.
इस तरह का खाना न केवल पोषणविहीन होता है इससे वजन बढ़ता है.
मोटापा आता है, जो अपने आप में कई तरह की बीमारियों का कारण है.
मोटापा कुपोषण से भी ज्यादा खतरनाक साबित हो सकता है.
क्योंकि मोटापे की वजह से हृदयाघात, मधुमेह, घुटने और कमर के दर्द, उच्च रक्तचाप की संभावना बढ़ जाती है.
आज संयुक्त परिवार की जगह एकाकी परिवार ने ली है.
ऐसे में युवाओं को घर में उस तरह का माहौल नहीं मिलता है.
वह शाम का समय घर वालों के साथ खानपान में बिताएं और एक स्वस्थ जीवनशैली अपनाएं.
एकाकी परिवार का हर सदस्य मुश्किल से एक दूसरे के लिए समय निकाल पाता है.
ऐसे में युवा अकेलेपन को पार्टियों में कम करते हैं.
जहां धीरे-धीरे एल्कोहल और दूसरी तरह के नशों की गिरफ्त में आते हैं.
सिगरेट और तंबाकू, सांस की तकलीफ और कैंसर जैसी बीमारियों को बढ़ाता है.
तो एल्कोहल किडनी और पेट की समस्याओं के साथ मोटापा बढ़ने का कारण बन जाता है.
आज एकाकी परिवार ने ली है संयुक्त परिवार की जगह
मार्डन लाइफ स्टाइल और खानपान के कारण होने वाली बीमारियां केवल महानगरों तक सीमित नहीं रही हैं.
बल्कि इसका विस्तार छोटे शहरों और गांवों तक बहुत तेजी से हुआ है.
डब्लूएचओ के मुताबिक भारत में 10 से 24 आयु वर्ग की करीब 23 लाख युवा आबादी हर साल असामायिक मौत की शिकार हो जाती है.
इसके साथ ही ऐसी युवा आबादी की संख्या इससे कई गुना ज्यादा है, जो इस तरह की बीमारियों से ग्रसित हैं.
जिन्हें कभी प्रौढ़ावस्था की समस्या समझा जाता था.
हमारे देश में हम उन रोगों को संजीदगी से लेते हैं जो साफ तौर दिखाई पड़ते हैं.
जिनके होने पर हमारा जीवन और गतिविधियां दोनों ठप पड़ जाते हैं और सरकार भी ऐसे ही रोगों को लेकर संजीदा रहती है.
सरकारें युवाओं को प्रभावित करने वाले इन रोगों के प्रति मुहिम के स्तर पर ध्यान नहीं दे रही हैं.
इन रोगों से देश की एक बड़ी आबादी बीमार समाज के निर्माण की ओर बढ़ रही है.
इसलिए जीवनशैली और खानपान की आदतोंकी वजह से पैदा हो रही बीमारियों परखुद भी ध्यान देने की जरूरत है.
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के मुताबिक भारत में 2005-06 की तुलना में मोटे लोगों की तादाद दोगुनी हो गयी है.
तनाव और अवसाद भी युवाओं को कुंठित कर रहा है
मधुमेह की तरह तनाव और अवसाद भी युवाओं को कुंठित कर रहा है.
इसका परिणाम यह है कि आत्महत्या की प्रवृत्ति भी बढ़ रही है.
परिवार का बना-बनाया ढांचा टूट जाता है.
यहां तक कि गांवों में भी पारिवारिक बिखराव बढ़ा है.
इसलिए शहरों के साथ-साथ गांवों में भी पारिवारिक संबल और सहयोग का सहारा छीन रहा है.
मार्डन लाइफ स्टाइल में सदस्यों के बीच और अब तो पति और पत्नी तक के बीच बड़े होने की अंतहीन होड़ मची हुई है.
युवाओं को रोजगार नहीं मिल रहा है इससे मानसिक तनाव पनप रहा है.
युवतियों के बीच अब केवल अच्छे शादी का ही तनाव नहीं रहा उनकी अपेक्षाएं बढ़ा दी हैं.
जिससे उनके वैवाहिक जीवन में शुरुआत से ही तनाव भर जा रहा है.
नौकरी करने वाली महिलाओं के अलग तनाव और मसलें हैं.