PM narendra modi का आत्मनिर्भर भारत अभियान है सामयिक

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PM narendra modi द्वारा लॉकडाउन से बिगड़ी अर्थव्यवस्था को आत्मनिर्भरता के माध्यम से देश की सुस्त एवं अवसादग्रस्त अर्थ व्यवस्था को चुस्त दुरुस्त बनाने का आह्वान सामयिक है और समय के अनुरुप है.

संपादकीय डेस्क,लोक हस्तक्षेप

संजय कुमार मिश्र रजोल/सामाजिक चिन्तक

PM narendra modi ने कोरोना संकट और लॉकडाउन से बिगड़ी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए 20 लाख करोड़ के पैकेज का ऐलान करते हुए ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान‘ का आगाज किया.

समय एक महत्वपूर्ण घटक है, उचित समय पर उचित निर्णय सफलता की संभावना को बल प्रदान करते है. आत्मनिर्भरता का तात्पर्य स्वदेशी से लिया जाना ही उचित है.

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आजादी के संघर्ष मे स्वदेशी एक जागरण का माध्यम था.अभाव की दशा मे भी देश की चेतना को जाग्रत करता था.

किन्तु स्वतंत्रता के बाद यह स्वर अनुदिन मध्यम पड़ता गया और उदारीकरण के दौर मे समाप्त प्राय हो गया.

यद्यपि बाबा रामदेव ने स्वदेशी की ताकत के बल पर हजारो करोड़ का आर्थिक साम्राज्य खड़ा कर स्वदेशी की अवधारणा को पुष्ट भी किये और इसे व्यावहारिक धरातल पर खड़ा भी किया.

विश्व स्तर पर उनके इस अभिनव प्रयोग ने व्यापार जगत को प्रभावित किया.

PM narendra modi ने आत्मनिर्भरता का मंत्र फूक कर मूर्छित अर्थव्यवस्था को संजीवनी शक्ति देने का प्रयास किया है लेकिन आत्मनिर्भरता की राह आसान नही है.

आज जब देश मे ही नही विश्व भर मे आर्थिक गतिविधिया ठप है.

भारत की अर्थव्यवस्था मे ग्रामीण हाट बाजार उत्पादक उपभोक्ता की गतिविधियो के केन्द्र रहे उनके ही सहारे ग्रामीण शिल्प कला कौशल की परम्परागत आर्थिक संरचना की निर्मिति हुयी.

PM narendra modi ने 20 लाख करोड़ के पैकेज में मनरेगा, स्वास्थ्य एवं शिक्षा, कारोबार,कंपनी अधिनियम के उल्लंघनों को गैर-आपराधिक बनाने, कारोबार की सुगमता, सार्वजनिक उपक्रम और राज्य सरकारों से जुड़े संसाधनों पर ध्यान दिया गया है.

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वस्तुओ के ब्राण्ड बने बाजार बने जो विश्व स्तर तक प्रतिष्ठित भी हुए लेकिन आज जब बड़े बड़े शापिंग माल और वितरण श्रृखंलाये आधुनिक रुप मे उपस्थित है.

जो गुणवत्ता पूर्ण किन्तु प्रायः असुन्दर उत्पाद इन बड़े प्रतिष्ठानो से निर्वासित है. पारिवारिक और पारंपरिक उत्पादक हतोत्साहित होकर खाली हाथ बैठे है.

काष्ठ धातु मृद एवं अन्य वस्तुओ के कारीगर अपनी ग्राहक संख्या गंवा बैठे है.

PM narendra modi ने जब यह बात उठायी है तो जिम्मेदार लोगो से यह आशा बनती है कि जिन कारणो से यह परम्परागत आर्थिक क्रियाए सम्पन्न करने वाली संरचना ध्वस्त हुयी थी.

फिर इस अमोघ आह्वान का प्रभाव बेअसर न कर दे. इस पर ध्यान देना चाहिए और सजग भी रहना होगा.

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आजादी के पश्चात आधुनिक औद्योगीकरण एवं तत्पश्चात वैश्वीकरण एवं उदारीकरण ने भारत की परम्परागत कला कौशल को नष्ट भ्रष्ट करने मे कोई कसर नही छोड़ी.

आज फिर वही संरचनाये इसे निष्प्रभ एवं निरर्थक करने के लिए सम्मुख प्रस्तुत है. तंत्र को सतर्क एवं सजग रहना होगा.

मेरा मानना है कि निर्यात एवं विश्व व्यापार के लिए सरकार को निर्यातोन्मुख विशेष इकाइयो की स्थापना करनी होगी,

जो आन्तरिक आर्थिक क्रियाओं विशेषतः उत्पादन और उपभोग मे हस्तक्षेप न करे.

शेष ग्रामोन्मुख क्रियाओ के संपादन संचालन के लिए नवीन संरचना की स्थापना कर उसे सुदृढ किया जाय.

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ध्यान देने योग्य बात यह है कि विशेष परिस्थितियो मे प्रवासी श्रमिक वर्ग का पलायन यह बताता है कि अभी तक जो माडल चल रहा था,

उसमे अर्थ व्यवस्था के खोखलेपन को ज्यादातर उजागर ही किया है.

महज इतने दिनो मे ही करोड़ो श्रमिक शक्ति पलायन को मजबूर हुयी. इस समस्या का समाधान भी आत्मनिर्भरता के मंत्र मे ही है.

श्रमिको का पलायन असुरक्षा और अनिश्चितता को ध्वनित करता है. अब ग्रामीण परिवेश पर ध्यान देने की आवश्यकता है.

गावो को आत्म निर्भर बनाना ही होगा. इसके लिए पसीना भी बहाना होगा.

योजना बनानी होगी माल और हाट बाजार को भी आधुनिक प्रोत्साहन के साथ पारंपरिक उत्पादो के गुणवत्ता परक उत्पादन के लिए तैयार करना होगा.

डिजिटल इण्डिया और आन लाइन व्यापार परंपरागत उत्पादो के विपणन का सहयोगी तत्व हो सकता है. और बाजार विस्तार का माध्यम भी.

लेकिन आत्मनिर्भरता का केन्द्र और उसके अंग अवयव पुष्ट करने के लिए गंभीर सर्वेक्षण प्रशिक्षण आर्थिक संरक्षण एवं स्थापना,

ग्राहक सृजन के संस्थात्मक प्रयोग पूरे राष्ट्रीय चरित्र के निर्माण के संकल्प के साथ करने होगे.

इतिहास गवाह है कि भारतीयो ने जो रचा है वह अद्वितीय है अद्भुत है लेकिन उसके लिए हाथ काटे जाने का भी उल्लेख है.

सभी अपनी आवश्यकता के साथ दूसरे की आवश्यकता को भी समझे और उसकी पूर्ति का गम्भीर प्रयास करे यही आत्मनिर्भरता का मूल तत्व है और उसकी कसौटी भी.

उत्पादक उपभोक्ता भी हो और उपभोक्ता भी उत्पादक तभी न्याय होगा.

धन का विकेन्द्रीकरण करना ही होगा अन्यथा पीढियां पलायन और पुनर्वास के बीच फंसी रहेगी. जिससे स्थायी विकास का लक्ष्य पूरा नही होगा.

PM narendra modi ने अब जब स्वयं यह आह्वान किया है तो उन्हे ही इसे पूरा करने का प्रयास करना चाहिए.

यह प्रयास पूर्ण होगा यह विश्वास करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विश्वसनीयता ही काफी है.

अभी तक का अनुभव है कि उनका जनसंपर्क और जनसंवाद उन्हे सच्चाई की तह तक पहुचाता है.

ऐसे PM narendra modi के आह्वान को सफल कर हम स्वदेशी स्वाभिमान और सम्मान युक्त जीवन के लक्ष्य तक पहुच सकते है.

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