Farm bills से शिरोमणि अकाली दल क्यों है नाराज़ ?

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Farm bills पर भाजपा की पुरानी सहयोगी शिरोमणि अकाली दल पार्टी से जबरदस्त नाराज चल रही है. हरसिमरत कौर बादल ने कृषि से जुड़े तीन विधेयकों के विरोध में कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया, वहीं सुखबीर सिंह बादल लगातार इन विधेयकों को लेकर कड़ा विरोध कर रहे हैं.

नई दिल्ली:LNN:Farm bills पर भाजपा की पुरानी सहयोगी शिरोमणि अकाली दल जबरदस्त नाराज है. खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने कृषि से जुड़े तीन विधेयकों के विरोध में गुरुवार को केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा तक दे दिया.

उन्होंने लोकसभा में इन विधेयकों के पारित होने से महज कुछ ही घंटे पहले ट्वीट किया,

‘मैंने किसान विरोधी अध्यादेशों और विधेयकों के विरोध में केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया है.

किसानों की बेटी और बहन के तौर पर उनके साथ खड़े होने पर गर्व है.’

Farm bills कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्द्धन और सुविधा) विधेयक-2020 और कृषक (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन समझौता और कृषि सेवा पर करार विधेयक-2020 गुरुवार को लोकसभा में पास कर दिए गए हैं.

अब इन्हें राज्यसभा में पास किया जाना है. विपक्ष ने इसके खिलाफ वॉकआउट किया है.

पंजाब की प्रमुख विपक्षी पार्टी और केंद्र में एनडीए की सहयोगी शिरोमणि अकाली दल के प्रमुख सुखबीर बादल ने इन विधेयकों का विरोध करते हुए कहा है कि ये पंजाब में कृषि क्षेत्र को तबाह कर देंगे.

सरकार का कहना है कि इस प्रस्तावित कानून से छोटे और सीमांत किसानों को फायदा मिलेगा.

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हालांकि पंजाब और हरियाणा जैसे कृषि आधारित अर्थव्यवस्था वाले प्रदेशों में इसके खिलाफ बड़े स्तर पर विरोध देखने को मिल रहा है. किसानों को अपनी रोजी-रोटी खोने का डर है.

सुखबीर बादल ने Farm bills का विरोध करते हुए संसद में कहा कि ‘शिरोमणि अकाली दल किसानों की पार्टी है और वह कृषि संबंधी इन विधेयकों का विरोध करती है.

प्रस्तावित अधिनियम कृषि क्षेत्र का निर्माण करने के लिये पंजाब की विभिन्न सरकारों और किसानों की 50 वर्षों की कड़ी मेहनत को बर्बाद कर देंगे.

पंजाब में बड़ी संख्या में किसान इन विधेयकों के खिलाफ हैं, जिसके बाद अकाली दल दबाव में आ गई है, जिसका परिणाम सरकार से उसके एकमात्र प्रतिनिधि के इस्तीफे के रूप में देखने को मिला है.

कौर ने अपने चार पेज लंबे इस्तीफे में लिखा है कि उनके लगातार तर्क करने और उनकी पार्टी की बार-बार की कोशिशों के बावजूद केंद्र सरकार ने इन विधेयकों पर किसानों का विश्वास हासिल नहीं किया.

‘चूंकि उनकी पार्टी का हर सदस्य किसान है, इसलिए पार्टी ऐसा कर किसानों के हितों की पैरोकार होने की अपनी वर्षों पुरानी परंपरा को बस जारी रख रही है.’

अकाली दल के इस कदम से इन दो पुरानी सहयोगियों के बीच का तनाव बाहर आ गया है.

कृषक (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन समझौता और कृषि सेवा पर करार विधेयक-2020 में किसानों को एग्री बिजनेस कंपनियों,

निर्यातकों और खुदरा विक्रेताओं के साथ नेटवर्किंग के माध्यम से सशक्त बनाने के लिए कृषि समझौतों का एक राष्ट्रीय ढांचा विकसित करने की बात कही गई है.

इस बिल में एक किसान को एक सहमति मूल्य पर कृषि उपज की आपूर्ति के लिए लिखित कृषि समझौता करने की अनुमति दी गई है.

इस समझौते में किसान को उपज की कीमत और गारंटीड कीमत से अधिक अतिरिक्त कीमत को साफ तौर पर दिखाने को कहा गया है.

कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्द्धन और सुविधा) विधेयक-2020 में किसानों को यह विकल्प दिया गया है कि वो अपनी उपज देशभर के किसी भी बाजार में प्रतिस्पर्धी कीमतों में बेच सकते हैं.

सरकार के मुताबिक, इस बिल का उद्देश्य किसानों और व्यापारियों के लिए एक ऐसा इकोसिस्टम तैयार करना है,

जहां उनके पास उपज की खरीद और बिक्री को लेकर खुद से चुनाव करने का विकल्प हो.

सरकार का कहना है कि इससे राज्य के अंदर और दूसरे राज्यों के साथ पारदर्शी और सुविधाजनक प्रतिस्पर्धी वैकल्पिक व्यापार के माध्यम खुलेंगे और इससे पारिश्रमिक कीमतें बढ़ेंगी.

अब इन विधेयकों से पंजाब और हरियाणा में विरोध-प्रदर्शन देखे जा रहे हैं क्योंकि किसानों को डर है कि उन्हें अब मिनिमम सपोर्ट प्राइस यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य पर उपज की कीमतें नहीं मिलेंगी.

वहीं कमीशन एजेंट्स को अपनी कमाई प्रभावित होने का डर है.

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विपक्षी पार्टियों ने इन विधेयकों के ‘किसान-विरोधी’ बताया है

और कहा है कि इससे कृषि क्षेत्र कॉरपोरेट हितों का मोहताज हो जाएगा.

पंजाब और हरियाणा को डर है कि इससे उनका राजस्व आना बंद हो जाएगा क्योंकि अगर किसान अपनी उपज कहीं और बेचेंगे तो वो मंडी शुल्क नहीं इकट्ठा कर पाएंगे.

इन राज्यों का अधिकतर राजस्व केंद्रीय खरीद एजेंसियों से आता है, जो इन राज्यों से केंद्रीय भंडारे के लिए गेंहू और चावल खरीदते हैं.

ऐसे में डर है कि अगर ये एजेंसियां यहां से उपज खरीदनी बंद कर देंगे तो उन्हें इसका राजस्व नहीं मिलेगा.

सुखबीर बादल ने लोकसभा में यह बिल पारित होने के बाद कहा कि उनकी पार्टी किसानों के हित के लिए कोई भी कुर्बानी देने को तैयार है.

उन्होंने यह भी कहा कि वो एनडीए में बने रहने पर बाद में फैसला करेंगे.

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