Chaudhary Ajit Singh चौ अजित सिंह राष्ट्रीय लोकदल के संस्थापक व अध्यक्ष के निधन के साथ भारतीय राजनीति में एक युग का अंत हो गया.चौ अजित सिंह 8 बार के लोकसभा या राज्यसभा सांसद एवं 4 बार केन्द्रीय मंत्री रह चुके थे.
लगा सका न कोई उसके कद का अंदाज़ा
वो आसमां था मगर सर झुकाये चलता था
अनिल दुबे, राष्ट्रीय सचिव, राष्ट्रीय लोकदल
Chaudhary Ajit Singh की कृषि और कंप्यूटर प्रौद्योगिकी में गहरी रुचि थी. जनता का दर्द समझने की ताकत तो जैसे उनके खून में थी.
पेशे से कंप्यूटर वैज्ञानिक रहे, चौधरी साहब ने किसान व वंचित वर्ग को उनकी राजनीतिक ताकत का एहसास कराया तथा उन्हें उनके हक़ दिलाने के लिए जीवन पर्यन्त संघर्ष किया.
Chaudhary Ajit Singh देश के ग्रामीण विकास केंद्रित मॉडल के एक प्रमुख वकील थे.
चौधरी साहब नहीं रहे!
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उन्होंने ग्रामीण अर्थव्यवस्था में बढ़े हुए निवेश और कृषि उत्पादकता में सुधार के लिए स्थायी प्रौद्योगिकियों के प्रसार और किसानों के लिए आर्थिक पैदावार बढ़ाने के उपायों पर जीवनपर्यन्त जोर दिया.
विशेष रूप से 1996 में, उन्होंने चीनी मिलों के बीच की दूरी को 25 किमी से घटाकर 15 किमी कर दी,
जिसके परिणामस्वरूप चीनी उद्योग में अधिक निवेश और प्रतिस्पर्धा बढ़ी और किसानों की आर्थिक स्थिति में भी सुधार हुआ.
कृषि मंत्री के रूप में, चौ अजित सिंह ने कोल्ड स्टोरेज क्षमता को बढ़ाने के लिए क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी योजना भी शुरू की, जिसने उद्योग में निजी निवेश के लिए आवश्यक प्रवाह को सक्षम किया.
2002 के सूखे के संकट का सामना कर रहे किसानों को राहत देने के लिए कृषि मंत्री चौ अजीत सिंह ने सभी संभव प्रयास किये, जिसके लिए लोग आज भी उन्हें याद करते हैं.
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उन्होंने कैलमिटी रिलीफ फंड (सीआरएफ) से सहायता को सभी किसानों को उपलब्ध करवाया, जो उस समय तक दो हेक्टेयर या उससे कम भूमि वाले किसानों तक ही सीमित थी,
यह विशेष रूप से उन क्षेत्रों में कृषक समुदायों के लिए महत्वपूर्ण था, जहां औसत भूस्खलन अधिक था लेकिन उत्पादकता कम थी.
चौ अजित सिंह ने देश में पुरातन और असमान भूमि अधिग्रहण कानूनों के खिलाफ जनता के आंदोलन को गति दी थी
और दिल्ली में गन्ना किसानों द्वारा एफआरपी संशोधन (2009) के खिलाफ आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 के खिलाफ सफल आंदोलन भी किया, जिसके फलस्वरूप देश में गन्ना किसानो की आर्थिक स्थिति में काफी सुधार हुआ.
Chaudhary Ajit Singh ने आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश सहित भारत के कुछ बड़े और प्रशासनिक रूप से शासन न करने योग्य राज्यों के पुनर्गठन के लिए आंदोलन किया.
भारतीय राजनीति में उन्हें सदैव एक कुशल वक्ता एवं किसान व वंचित वर्ग को उनका हक़ दिलवाने वाले एक संघर्षशील राजनेता के रूप में याद रखा जाएगा.
उनके जाने से एक ऐसा शून्य पैदा हो गया जो कभी भरा नहीं जा सकता.