Flying Sikh : नहीं रहें 91 वर्षीय मिल्खा सिंह 11:30 बजे ली अंतिम सांस

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Flying Sikh
FLYING SIKH 91-YEAR-OLD MILKHA SINGH BREATHED HIS LAST AT 1130 AM

नई दिल्ली : Flying Sikh : महान ऐथलीट Milkha Singh भले हमारे बीच अब न रहे हों.

लेकिन ट्रैक ऐंड फील्ड में जो उनकी अनगिनत उपब्धियां हैं उन्हें कभी नहीं भुलाया जा सकता.

91 वर्षीय मिल्खा सिंह ने चंडीगढ़ में शुक्रवार रात 11:30 बजे अंतिम सांस ली.




Flying Sikh के नाम से मशहूर मिल्खा सिंह 1960 ओलिंपिक में महज कुछ सेकंड के लिए पदक से चूक गए थे.

उसी साल मिल्खा सिंह को पाकिस्तान में दौड़ने का आमंत्रण मिला था लेकिन उन्होंने पहले इसे ठुकरा दिया था.

हालांकि बाद में देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के समझाने पर उन्होंने पाकिस्तान जाने का फैसला किया.

अपनी बायोपिक फिल्म के लॉन्चिंग के मौके पर मिल्खा सिंह ने पाकिस्तान दौरे को याद कर कहा था.

मुझे 1960 में पाकिस्तान से लाहौर में दौड़ने का आमंत्रण आया था.

मगर मैंने पाकिस्तान जाने से इनकार कर दिया था.

क्यों इनकार किया क्योंकि जब उस रात की सीन मेरी आंखों के सामने आता था कि किस तरह बंटवारे के समय मेरे मां-बाप.

भाई बहनों को मारा जा रहा था तब मेरा दिल दहल जाता था.

और मैंने कहा कि मैं पाकिस्तान नहीं जाउंगा.

मगर पंडित जी ने मुझे बुलाया और कहा कि मिल्खा जी नहीं, हमारा पड़ोसी देश है.

खेल प्यार बढ़ाती है और भाईचारा करती है.

हमने जाना ही जाना है पाकिस्तान.

पाकिस्तान में उस समय अब्दुल खालिक का जोर था.

खालिक वहां के सबसे तेज धावक थे.

दोनों के बीच दौड़ हुई.

मिल्खा ने खालिक को हरा दिया.




पूरा स्टेडियम अपने हीरो का जोश बढ़ा रहा था लेकिन मिल्खा की रफ्तार के सामने खालिक टिक नहीं पाए.

मिल्खा की जीत के बाद पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति फील्ड मार्शल अयूब खान ने ‘फ्लाइंग सिख’ का नाम दिया.

बकौल मिल्खा, ‘मुझे आज भी वो दिन याद है जब बाघा बॉर्डर पर उन्होंने जीप को फूलों से सजाया हुआ था.

मुझे उसमें खड़ा किया गया. उस दौरान सड़क के दोनों ओर लोग हाथ में तिरंगा और पाकिस्तान का झंडा लिए मेरा नाम लेकर चिल्ला रहे थे.

जब मैं लाहौर पहुंचा तो होटल में एक अखबार देखा उसमें लिखा था मिल्खा सिंह और अब्दुल खालिद की टक्कर, इंडिया और पाकिस्तान की टक्कर.

मुझे ये अच्छा नहीं लगा. जब मैं लाहौर स्टेडियम में पहुंचा तो 60 हजार आदमी वहां मौजूद थे.

वो सभी मिल्खा सिंह और खालिद का मैच देखने के लिए आए थे.

रेस के दौरान जनरल अयूब खान भी वहां बैठे हुए थे.

जब रेस होने लगी तो स्टेडियम में सन्नाटा छा गया जैसे वहां कोई है ही नहीं.

मिल्खा सिंह ने कहा था कि उन्हें फ्लाइंग सिख का नाम जनरल अयूब खान ने दिया था.

उन्होंने कहा, ‘ इसका श्रेय पाकिस्तान को जाता है.

जब मैं रेस जीता तो अयूब खान मेरे गले में मेडल डालने स्टेज पर आए और उन्होंने कहा कि आज तुम दौड़े नहीं उड़े हो.

जब मैंने जीत के बाद स्टेडियम का चक्कर लगाया तो स्टेडियम में 10 हजार महिलाएं बुर्के पहनी हुई बैठी थीं.

उन्होंने बुर्के उठाए और कहा कि इस सरदार ने कमाल कर दिया.

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